बारातों का नाम सुनते ही मन में खुशियों और उत्साह का झोंका सा आता है। सजावट से सजी सड़कों पर नाचते-गाते बाराती, ढोल की थाप पर झूमता हर चेहरा, और हर तरफ एक उल्लास का माहौल। ऐसा ही नज़ारा कल एक बारात में देखने को मिला। चारों ओर खुशियां थीं, रंग-बिरंगी रोशनी थी, और ढोल-नगाड़ों की आवाज़ ने माहौल को और खूबसूरत बना दिया था।

परंतु इस खुशी के बीच मेरी नजर बार-बार उन लोगों पर जा रही थी, जिनके बिना शायद यह सब मुमकिन नहीं होता। ये वे लोग थे, जो ढोल बजा रहे थे, बैंड की धुनों पर संगीत दे रहे थे, या फिर बारात में नाचते लोगों के लिए व्यवस्था संभाल रहे थे। उनके चेहरों पर थकावट की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं। ऐसा लगता था जैसे दिनभर की मेहनत के बाद भी वे रात में इस बारात का हिस्सा बनने आए हों, पर सिर्फ अपनी आजीविका के लिए।

उनकी आंखों में एक अलग सी कहानी दिख रही थी। यह कहानी बारात की रौनक से परे, उनके जीवन की वास्तविकता की थी। शायद उनके लिए यह नाच-गाना और खुशी का माहौल महज काम था। उनकी सोच कल की चिंता में उलझी हुई थी – अगला दिन कैसा होगा? कितनी कमाई होगी?

ऐसे थके हुए चेहरे, जिनके बिना बारात का यह उल्लास अधूरा होता, उनकी उदासी कहीं मन को झकझोर रही थी। हम उनकी मेहनत को देखकर खुशियां मनाते हैं, पर उनकी जिंदगी में खुशी के लिए जगह कम ही दिखती है।

ईश्वर से यही प्रार्थना है कि इन मेहनतकश लोगों के चेहरों पर भी वह मुस्कान लौटे, जो बारातियों के चेहरों पर झलकती है। जिस खुशी का माहौल वे दूसरों के लिए तैयार करते हैं, वही खुशी उनकी जिंदगी का हिस्सा भी बने। जब बारात में हर चेहरा मुस्कुराएगा, तब ही यह खुशी सच्चे मायने में पूरी होगी।

 

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