ममता: एक अमर प्रेम गाथा और बलिदान की कहानी

27 फरवरी 1966 को रिलीज़ हुई हिंदी सिनेमा की कालजयी फिल्म ‘ममता’ आज 59 वर्ष पूरे कर चुकी है। यह फिल्म न सिर्फ अपने सशक्त कथानक के लिए जानी जाती है, बल्कि इसके मार्मिक संगीत और प्रभावशाली अभिनय ने भी इसे अमर बना दिया है।

एक दर्द भरी प्रेम कहानी
असित सेन के निर्देशन में बनी ‘ममता’ बंगाली फिल्म उत्तर फाल्गुनी (1963) का हिंदी रूपांतरण थी, जिसमें सुचित्रा सेन ने दोहरी भूमिका निभाई थी। फिल्म की कहानी मोनीष राय (अशोक कुमार) और देवयानी (सुचित्रा सेन) के प्रेम से शुरू होती है, लेकिन सामाजिक और पारिवारिक अड़चनें इस प्रेम कहानी को त्रासदी में बदल देती हैं।

मोनीष, जो एक संपन्न परिवार से ताल्लुक रखता है, इंग्लैंड जाकर पढ़ाई करना चाहता है, लेकिन देवयानी से शादी भी करना चाहता है। हालांकि, हालात ऐसे बनते हैं कि मोनीष को विदेश जाना पड़ता है, और देवयानी की शादी मजबूरी में एक अधेड़ और चरित्रहीन व्यक्ति राखल से हो जाती है। राखल की बुरी आदतों के कारण देवयानी का जीवन कष्टमय बन जाता है।

त्याग, संघर्ष और समाज का आईना
देवयानी की जिंदगी तब और कठिन हो जाती है जब राखल जेल चला जाता है। मजबूर होकर वह अपनी बेटी सुपर्णा को एक मिशनरी आश्रम में छोड़ देती है ताकि वह राखल की कुदृष्टि से बच सके। समाज से ठुकराई गई देवयानी आगे चलकर पन्नाबाई नामक प्रसिद्ध तवायफ बन जाती है।

वहीं, मोनीष जब विदेश से लौटता है और देवयानी के अतीत को जानता है, तो उसका दिल टूट जाता है। सालों बाद जब वह लखनऊ की सड़कों पर देवयानी की झलक देखता है, तो उसे विश्वास नहीं होता कि यह वही लड़की है जिससे उसने कभी बेइंतहा मोहब्बत की थी।

संगीत जो आत्मा को छू जाए
फिल्म का संगीत रोशन ने दिया था, जबकि इसके गीत मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखे थे। “रहें ना रहें हम” आज भी लता मंगेशकर की सबसे लोकप्रिय धुनों में से एक मानी जाती है। इस गीत को मोहम्मद रफ़ी और सुमन कल्याणपुर ने भी आवाज़ दी थी, जो श्रोताओं के दिलों में अमिट छाप छोड़ने में सफल रहा।

धर्मेंद्र की दमदार भूमिका
फिल्म में धर्मेंद्र ने बैरिस्टर इंद्रनील की भूमिका निभाई थी, जो देवयानी की मदद करने की कोशिश करता है। अन्य कलाकारों में बिपिन गुप्ता, डेविड अब्राहम, तरुण बोस, पहाड़ी सान्याल, प्रतिमा देवी और छाया देवी प्रमुख भूमिकाओं में थे। निर्देशक असित सेन ने खुद भी फिल्म में महादेव प्रसाद का किरदार निभाया था।

‘ममता’ की अमरता
समाज में महिलाओं की स्थिति, प्रेम, त्याग और मजबूरियों की यह कहानी आज भी दर्शकों के दिलों में जीवित है।

 

रिपोर्ट: निहाल देव दत्ता

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *