न्याय और शांति की राह देखतीं आंखें : बंगाल हिंसा से विस्थापित सैकड़ों परिवार बेघर
मुर्शिदाबाद। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ कानून को लेकर भड़की सांप्रदायिक हिंसा ने इलाके में भय और अनिश्चितता का माहौल पैदा कर दिया है। बीते सप्ताह से जारी इस हिंसा में अब तक तीन लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि लगभग 400 लोग अपने ही घरों से उजड़ चुके हैं।
धुलियान, सुत्ती और समहेरगंज जैसे इलाकों से विस्थापित हुए परिवारों ने अब परलालपुर हाई स्कूल के राहत शिविर में शरण ली है। स्कूल की कक्षाएं अब अस्थायी आश्रय में तब्दील हो चुकी हैं, जहां बच्चों की किताबों की जगह अब बेडिंग और राशन का सामान रखा गया है।
News Sources – With NewsArena , ANI .
24 वर्षीय सप्तमी मंडल, जो अभी-अभी मां बनी हैं, अपनी आठ दिन की बच्ची को गोद में लिए बैठी हैं। वह बताती हैं, “हम गंगा पार करके भागे, अंधेरे में। बीएसएफ के जवानों ने मदद की, लेकिन अब भी डर बना हुआ है… हम फिर कभी वापस जा भी पाएंगे या नहीं, पता नहीं।”
हिंसा में मारे गए लोगों में ईजाज अहमद की गोली लगने से मौत हुई, जबकि हरगोबिंद दास और उनके बेटे चंदन को उनके घर से खींचकर भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला।
56 वर्षीय तुलारानी मंडल का घर आग के हवाले कर दिया गया। उनका कहना है, “हम तभी वापस जाएंगे जब इलाके में स्थायी बीएसएफ कैंप स्थापित हो। वरना हमारे लिए वहां रहना नामुमकिन है।”
लालपुर की प्रतिमा मंडल बताती हैं, “हम छत पर छुपे रहे। एक साल के बच्चे को लेकर अगली सुबह नाव से भागे।” वहीं सब्जीपट्टी से आईं नमिता मंडल प्रशासन पर भरोसा नहीं कर पा रही हैं। उनका कहना है, “पुलिस और बीएसएफ तो कभी न कभी हटेगी… उसके बाद क्या होगा?”
राहत शिविर में भोजन और चिकित्सा की जिम्मेदारी प्रशासन और स्थानीय ग्रामीणों ने मिलकर संभाली है। बीडीओ सुकांत सिकदर ने बताया, “हम चावल, दाल, आलू, अंडा, बच्चों को दूध और बेबी फूड मुहैया करा रहे हैं। टेंट और पीने के पानी की व्यवस्था भी की गई है।”
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से नियुक्त डॉ. प्रसनजीत मंडल ने बताया कि शिविर में एक गर्भवती महिला का इलाज चल रहा है, जबकि दूसरी को ग्रामीण अस्पताल रेफर किया गया है।
रविवार को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने राहत शिविर का दौरा किया। पहले पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन बाद में उन्हें अंदर जाने की अनुमति मिल गई।
हालांकि, हालात फिलहाल नियंत्रण में बताये जा रहे हैं और 200 से अधिक गिरफ्तारियां हुई हैं, लेकिन शिविरों में रह रहे लोगों के चेहरों पर डर साफ झलकता है।