संयुक्त परिवारों के मध्यम वर्गीय जीवन की झलक
आगरा की गलियों में फिल्माई गई ‘सारा आकाश’ ने भारतीय सिनेमा में एक ऐसा अध्याय लिखा, जो आज भी स्मरणीय है। राजेंद्र यादव की कहानी पर आधारित इस फिल्म का निर्देशन बसु चटर्जी ने किया था, जो समानांतर सिनेमा के स्तंभों में गिने जाते हैं। यह फिल्म न केवल मध्यम वर्गीय परिवारों की समस्याओं को उभारती है, बल्कि कला और मनोरंजन का बेजोड़ संतुलन भी प्रस्तुत करती है।
सहज और जीवंत फिल्मांकन का अनुभव
फिल्म की शूटिंग राजेंद्र यादव के पुराने पारिवारिक घर में की गई थी, जो राजा की मंडी, आगरा में स्थित है। ध्वनि रिकॉर्डिंग के लिए प्रसिद्ध नरिंदर सिंह ने इस फिल्म के निर्माण के अनुभव को बेहद खास बताया। उन्होंने कहा, “फिल्म की शूटिंग के दौरान जो आपसी मेलजोल और आत्मीयता देखने को मिली, वह फिर कभी महसूस नहीं हुई। पूरी यूनिट एक बंगलो में रुकी थी। महिलाओं के लिए अलग कमरे थे और पुरुष बड़े हॉल में बिछी चारपाइयों पर सोते थे। यह सब किसी रिश्तेदार की शादी में शामिल होने जैसा अनुभव था।”
ध्वनियों का अनूठा समावेश
फिल्म के संवाद और स्थान की वास्तविक ध्वनियां, जैसे भीड़भाड़ वाले बाजार और आगरा विश्वविद्यालय के माहौल को स्थान पर ही रिकॉर्ड किया गया। सिंह बताते हैं कि एक बार गुस्साए छात्रों ने शूटिंग देखने की अनुमति न मिलने पर पटाखे फेंकने शुरू कर दिए। बावजूद इसके, टीम ने हर रात साथ बैठकर दिनभर के काम की समीक्षा की और अगले दिन की योजना बनाई।
मध्यम मार्ग सिनेमा का जन्म
‘सारा आकाश’ ने चमक-धमक वाले व्यावसायिक सिनेमा और आत्ममुग्ध कला फिल्मों के बीच एक मध्यम मार्ग प्रस्तुत किया। यही शैली बाद में ऋषिकेश मुखर्जी, बसु भट्टाचार्य और गुलजार जैसे निर्देशकों द्वारा और अधिक लोकप्रिय हुई।
संयुक्त परिवारों की स्मृतियां
यह फिल्म उन लोगों के लिए एक भावुक स्मृति है, जिन्होंने कभी संयुक्त परिवारों के जीवन को जिया है। यह मध्यम वर्गीय भारत की उन पुरानी कहानियों को जीवंत करती है, जिन्हें समय ने धुंधला कर दिया था।