भारत की उच्च शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव की दस्तक
देश में विदेशी विश्वविद्यालयों के कैंपस खोलने की तैयारी तेज, शिक्षा प्रणाली में सुधार की नई उम्मीद
रिपोर्ट : अमर शर्मा

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली लंबे समय से कई समस्याओं से जूझ रही है — गुणवत्तापूर्ण शोध और शिक्षण की कमी, पुरानी पाठ्यक्रम प्रणाली, कमजोर बुनियादी ढांचा और उद्योग-विश्वविद्यालय के बीच की दूरी ने इस क्षेत्र की विश्व स्तरीय बनने की संभावना को बाधित किया है। लेकिन अब एक बड़ा बदलाव दस्तक दे रहा है। केंद्र सरकार द्वारा विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने कैंपस खोलने की अनुमति देना इसी दिशा में एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है।

शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने हाल ही में जानकारी दी कि 2025-26 तक लगभग 15 विदेशी विश्वविद्यालय देश में अपने कैंपस स्थापित करेंगे। यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) ने भी यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल को बेंगलुरु में अपना पहला ओवरसीज कैंपस शुरू करने की अनुमति दे दी है। यह यूके की रसेल ग्रुप की दूसरी यूनिवर्सिटी है जो भारत में प्रवेश कर रही है।

विदेश जाने वाले छात्रों में भारी इजाफा

2024 में रिकॉर्ड 13.35 लाख भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश गए। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि देश में ही विश्वस्तरीय शिक्षा और शोध की व्यवस्था हो, तो न केवल ब्रेन ड्रेन रुकेगा, बल्कि भारी विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी। नीति आयोग के अनुसार, छात्र पलायन पर भारत हर साल 15 से 20 अरब डॉलर गंवा देता है।

गुजरात में ऑस्ट्रेलियाई यूनिवर्सिटी, अब हर राज्य की बारी

गुजरात में पहले से ही दो ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों के कैंपस चालू हो चुके हैं। वहीं, हरियाणा के गुरुग्राम में यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन की उपस्थिति ने यह साफ कर दिया है कि विदेशी संस्थान भारत के शिक्षा बाजार में बड़ी दिलचस्पी ले रहे हैं। इसके पीछे कारण भी साफ है — भारत में 18 से 23 वर्ष की आयु के केवल 27 प्रतिशत युवा ही कॉलेज या विश्वविद्यालय में पढ़ रहे हैं, यानी विशाल संभावनाओं का क्षेत्र अब भी खुला है।

यूजीसी का ऐतिहासिक निर्णय

2023 में UGC ने पहली बार ड्राफ्ट नियमों के तहत विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस खोलने, अपनी फीस तय करने और प्रवेश प्रक्रियाएं निर्धारित करने की स्वायत्तता देने का फैसला लिया। लंबे समय से जो उच्च शिक्षा उपनिवेशवादी संरचना की बंदिशों में कैद थी, अब उसमें बदलाव की लहर दिख रही है।

चुनौतियाँ भी कम नहीं

हालांकि, इस नई पहल के सामने कई चुनौतियाँ भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती है — भारतीय नौकरशाही की जटिलताएं। विदेशी विश्वविद्यालयों को सुगमता से संचालन के लिए लंबे समय तक के लाइसेंस, त्वरित मंजूरी प्रक्रिया और अकादमिक स्वतंत्रता की गारंटी की आवश्यकता है।

इसके अलावा, यह भी जरूरी है कि प्रवेश शुल्क अत्यधिक न हो और छात्रों को स्कॉलरशिप और सपोर्ट सिस्टम भी दिया जाए। सरकार को चाहिए कि केवल उच्च गुणवत्ता वाले संस्थानों को ही अनुमति दे, जो भारत की कौशल आवश्यकता के अनुसार पाठ्यक्रम चला सकें।

साझेदारी व अनुसंधान को मिले बढ़ावा

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि विदेशी विश्वविद्यालय भारतीय संस्थानों के साथ मिलकर डिग्री प्रोग्राम और रिसर्च हब बनाएं, तो नवाचार को गति मिल सकती है। सरकार यदि कर छूट और अन्य प्रोत्साहन योजनाओं को स्कॉलरशिप और रिसर्च निवेश से जोड़ दे, तो यह साझेदारी और भी लाभकारी बन सकती है।

विश्व स्तर पर बढ़ती रुचि

अमेरिका के विश्वविद्यालय दुनिया भर में 70 से अधिक शाखा कैंपस चला रहे हैं, जिनमें से अधिकतर चीन और खाड़ी देशों में हैं। भारत भले ही इन संस्थानों को वित्तीय सहायता न दे रहा हो, लेकिन यहां के विशाल छात्र समुदाय को देखते हुए, यह बाजार हर विदेशी विश्वविद्यालय के लिए अत्यधिक आकर्षक बन सकता है।

निष्कर्ष : भारत बनेगा शिक्षा का वैश्विक केंद्र

यदि यह नीति पूरी पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने वाली प्रणाली के साथ लागू की जाती है, तो भारत न केवल अपने युवाओं को बेहतर शिक्षा प्रदान कर सकेगा, बल्कि दुनिया भर के छात्रों के लिए भी एक आकर्षक शैक्षिक गंतव्य बन सकता है। यह पहल भारतीय उच्च शिक्षा को एक नई ऊँचाई देने की क्षमता रखती है — जरूरत है तो बस निष्पक्ष क्रियान्वयन और दीर्घकालिक दृष्टिकोण की।

 

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