बिहार का एक गांव जहां 400 वर्षों से नहीं खेली जाती होली, परंपरा तोड़ने पर आते हैं संकट

मुंगेर, 10 मार्च – पूरे देश में होली की धूम मची हुई है, मगर बिहार के मुंगेर जिले का एक गांव ऐसा भी है, जहां पिछले 400 वर्षों से यह त्योहार नहीं मनाया जाता। इस गांव में न रंगों की बौछार होती है, न गुलाल उड़ता है और न ही पारंपरिक पकवान बनते हैं। गांव वालों की मान्यता है कि यदि किसी ने इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश की, तो उसके घर अनहोनी हो जाती है।

सदियों से चली आ रही परंपरा

मुंगेर जिले के असरगंज प्रखंड स्थित साजुआ सती स्थान गांव में करीब 150 घरों में लगभग 700 लोग रहते हैं, लेकिन कोई भी होली नहीं मनाता। यहां के बुजुर्गों का कहना है कि चार शताब्दियों पहले हुई एक घटना के बाद से गांव में होली मनाने पर प्रतिबंध सा लग गया।

400 साल पुरानी मान्यता

गांव के वरिष्ठ नागरिकों के अनुसार, करीब चार सौ साल पहले होलिका दहन के दिन एक महिला के पति की मृत्यु हो गई थी। उस महिला ने अपने पति के साथ सती होने की इच्छा जताई, लेकिन गांव वालों ने उसे रोकने की कोशिश की। बावजूद इसके, जब उसका पति की चिता जलाने के लिए ले जाया गया, तो शव बार-बार अर्थी से गिरने लगा।

गांव वालों ने जब उसे कमरे से बाहर निकाला, तो वह सीधे अपने पति के पास पहुंची। उसी वक्त, मान्यता के अनुसार, उसकी सबसे छोटी उंगली से अचानक आग निकलने लगी और इसी अग्नि में पति-पत्नी दोनों जलकर सती हो गए। इस घटना के बाद से गांव में होली नहीं मनाई जाती, क्योंकि ग्रामीण इसे अपशकुन मानते हैं।

होली के दिन नहीं जलती होलिका, अप्रैल में होता है दहन

गांव के निवासी बिंदेशरी सिंह बताते हैं कि गांव में होली के दिन न रंग खेला जाता है, न पकवान बनाए जाते हैं। यहां तक कि अगर कोई परिवार होली के दौरान परंपरा तोड़ने की कोशिश करता है, तो उनके घर अनहोनी हो जाती है। कई घटनाएं ऐसी हो चुकी हैं, जब घरों में आग लगने जैसी घटनाएं घटी हैं।

गांव के लोगों ने इस मान्यता को अपनाते हुए होली का बहिष्कार कर दिया है। दिलचस्प बात यह है कि गांव में होलिका दहन भी 14 अप्रैल को किया जाता है, जब फागुन महीना समाप्त हो जाता है।

गांव के बाहर भी मान्य है परंपरा

स्थानीय निवासी महेश सिंह बताते हैं कि गांव के लोग यदि होली के दिन बाहर भी जाते हैं, तो लोग उन्हें रंग नहीं लगाते। यहां सभी जाति और समुदाय के लोग रहते हैं, लेकिन सभी इस परंपरा को निभाते हैं।

यह रहस्यमयी परंपरा अब भी इस गांव में कायम है। आधुनिक दौर में भी ग्रामीणों की आस्था इतनी प्रबल है कि वे इसे तोड़ने का प्रयास तक नहीं करते।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *