बिहार का भविष्य खेतों में खो गया है क्या?
✍🏻 अमर शर्मा, विशेष लेख | TWM News

इस चित्र को ध्यान से देखें। एक ओर खड़ा है आधुनिक भारत का प्रतीक—रोबोट, तकनीक, और विकास के तमाम वादे। दूसरी ओर खड़ा है एक वृद्ध किसान, जिसकी आँखों में थकावट है, और चेहरा सवालों से भरा हुआ।

आज देशभर में आईटी इंडस्ट्रीज़, सेमीकंडक्टर प्लांट्स, टेक्सटाइल पार्क, इलेक्ट्रॉनिक्स क्लस्टर, प्लास्टिक पार्क और डिफेंस कॉरिडोर जैसी योजनाएं चर्चा में हैं। लेकिन सवाल यह है—क्या इनमें से कोई सपना बिहार की ज़मीन पर भी पनप रहा है?

बिहार के युवा रोज़गार के लिए पलायन कर रहे हैं। किसान अब भी अपने भविष्य को बिजली के खंभों और टूटी हुई सड़कों के बीच तलाश रहे हैं। इस तस्वीर का रोबोट मानो पूछ रहा हो—”क्या विकास सिर्फ स्लोगन बनकर रह गया है?”

यह हालात सिर्फ आर्थिक नहीं, सामाजिक पीड़ा का रूप भी हैं। बिहार के पास प्रतिभा है, मेहनती लोग हैं, इतिहास है, लेकिन इन योजनाओं की अनुपस्थिति बताती है कि नीतियां आज भी दिल्ली और दूसरे राज्यों में सिमटी हुई हैं।

सरकारों को चाहिए कि वे इन वादों को ज़मीनी सच्चाई में बदलें। अगर आईटी पार्क बेंगलुरु में बन सकता है, तो पटना, भागलपुर या दरभंगा में क्यों नहीं?

बिहार का भविष्य तभी उज्जवल होगा जब ‘विकास’ सिर्फ स्लाइड प्रजेंटेशन तक सीमित न रहकर, गांव की मिट्टी में भी दिखेगा। वरना यह तस्वीर बार-बार यही पूछेगी—“Where is Bihar’s Future?”


 

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