डेविड लिंच के विज़न का रहस्यमय संसार

सिनेमा केवल कहानियों का माध्यम नहीं, बल्कि एक दार्शनिक यात्रा भी हो सकता है। डेविड लिंच ऐसे फिल्मकार हैं जिनकी रचनात्मक दृष्टि हमें यह सिखाती है कि जीवन किसी एक निश्चित दिशा में आगे बढ़ने के लिए बाध्य नहीं है। उनके सिनेमा में मानवीय जिज्ञासा और मासूमियत अक्सर उन अज्ञात शक्तियों से टकराती है, जो हमारे अस्तित्व के संतुलन को चुनौती देती हैं।

लिंच की फिल्मों में समय और स्थान एक केंद्र से भटकते प्रतीत होते हैं, जैसे कोई रहस्यमय ताकत हमें यह सिखाने का प्रयास कर रही हो कि हमारी ब्रह्मांडीय यात्रा केवल समझने और नियंत्रण में रखने की जद्दोजहद नहीं है, बल्कि यह भी कि हमें निरंतर असमंजस में जीने की कला सीखनी होगी। उनकी कहानियां यह दर्शाती हैं कि मानव चेतना केवल आत्मकेंद्रित नहीं रह सकती, बल्कि इसे इस विशाल ब्रह्मांड के अन्य तत्वों से जुड़ना होगा।

टेरेन्स मलिक की भांति, डेविड लिंच का सिनेमा पारंपरिक कथानकों से आगे बढ़कर ‘मनुष्य बनाम ब्रह्मांड’ की गूढ़ कथा प्रस्तुत करता है। यह संघर्ष केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक भी है, जहां व्यक्ति को अपनी ही सीमाओं और अज्ञात ताकतों के बीच संतुलन साधना होता है।

भारतीय सिनेमा में, यदि ऐसे किसी सिनेमा की झलक मिलती है, तो वह ऋत्विक घटक और कुमार शहानी के कार्यों में देखी जा सकती है। घटक की फिल्मों में समाज, प्रकृति और मनुष्य के जटिल रिश्तों की गूंज सुनाई देती है, जबकि शहानी के सिनेमा में दृश्य, ध्वनि और विचारों की ऐसी बुनावट होती है, जो हमें ब्रह्मांडीय स्तर पर सोचने को विवश करती है।

डेविड लिंच और इन भारतीय फिल्मकारों की विशेषता यही है कि वे सिनेमा को केवल एक मनोरंजन नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और दार्शनिक अनुभव के रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनका सिनेमा हमें यह बताने का प्रयास करता है कि जीवन के रहस्य केवल उन कहानियों में नहीं बसते, जिन्हें हम सुनते या दिखाते हैं, बल्कि उन अनकहे, अदृश्य तत्वों में भी समाए रहते हैं, जो हमारे अस्तित्व को किसी अज्ञात दिशा में धकेलते रहते हैं।

 

रिपोर्ट: अनिरुद्ध नारायण

(मीडिया छात्र, पटना)

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