पणजी। मशहूर अभिनेता मनोज बाजपेयी, जिन्होंने “गली गुलियां”, “भोंसले” और “जोरम” जैसी समीक्षकों द्वारा सराही गई स्वतंत्र फिल्मों (इंडी फिल्मों) में अभिनय किया है, का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में मिले अवॉर्ड्स भारतीय इंडी फिल्मों को घरेलू स्तर पर अधिक स्वीकार्यता नहीं दिला पाते।

इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (IFFI) के दौरान बाजपेयी ने कहा, “अगर कोई स्वतंत्र सिनेमा विदेश में बड़े पुरस्कार जीतता है, तो भी उसका हमारी फिल्म इंडस्ट्री के कॉर्पोरेट या व्यवसायिक क्षेत्र पर कोई खास असर नहीं पड़ता। अवॉर्ड्स कलाकार या निर्देशक के जीवन में कोई मूल्य नहीं जोड़ते।”

उन्होंने कहा, “हम अवॉर्ड जीतते हैं, उस दिन जश्न मनाते हैं, लेकिन अगले दिन उसे भूल जाते हैं। क्या वह अवॉर्ड मुझे अधिक फिल्में दिला रहा है? क्या मेरी फिल्म को बेहतर रिलीज मिल रही है? क्या मेरी फीस बढ़ रही है? इसका उत्तर है नहीं। अवॉर्ड का महत्व सिर्फ एक रात तक सीमित है।”

हाल ही में, निर्देशक हंसल मेहता ने एक पोस्ट में बताया कि पायल कापाड़िया की “ऑल वी इमैजिन ऐज लाइट”, जिसने कान्स में ग्रैंड प्रिक्स अवॉर्ड जीता था, को अब तक किसी भी ओटीटी प्लेटफॉर्म ने नहीं खरीदा है।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए मनोज बाजपेयी ने कहा, “हंसल ने जो कहा वह सच है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है।” बता दें कि पायल कापाड़िया की यह फिल्म पिछले 30 वर्षों में भारत की पहली फिल्म है, जिसे कान्स के आधिकारिक प्रतियोगिता वर्ग में चुना गया और ग्रैंड प्रिक्स अवॉर्ड से नवाजा गया।

बाजपेयी ने अपने अनुभव साझा करते हुए यह भी कहा कि जब तक इंडी फिल्मों को बड़े स्तर पर रिलीज और व्यावसायिक समर्थन नहीं मिलता, तब तक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों का प्रभाव सीमित रहेगा।

शिवांशु सिंह (फोटो जर्नलिस्ट)

टीडब्ल्यूएम न्यूज़

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