जातीय जनगणना पर बदले पीएम मोदी के सुर: बिहार की सियासत में कांग्रेस के पिच पर बीजेपी
संवेदनशील मुद्दे पर नई बहस, आरक्षण की सीमा तोड़ने की तैयारी?

देश की राजनीति में जातीय जनगणना एक बार फिर केंद्र बिंदु बन गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिन्होंने पहले जाति आधारित जनगणना को लेकर स्पष्ट विरोध जताया था, अब उसी मुद्दे पर नरम रुख अपनाते नजर आ रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक इसे बिहार में जातीय समीकरणों के मद्देनज़र लिया गया “रणनीतिक मोड़” बता रहे हैं, जहां हालिया वर्षों में जातीय जनगणना की मांग जोरों पर रही है।

दिलचस्प बात यह है कि यह मुद्दा सबसे पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रमुखता से उठाया था। राहुल ने स्पष्ट किया था कि जातीय जनगणना केवल एक साधन है, अंतिम लक्ष्य नहीं। उनका नारा “जितनी आबादी, उतनी भागीदारी” अब एक राजनीतिक आंदोलन का रूप लेता जा रहा है।

राहुल गांधी का तर्क है कि देश की 90 फीसदी जनसंख्या — जिसमें अनुसूचित जातियां, जनजातियां, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक शामिल हैं — अब तक सत्ता और संसाधनों से वंचित रही है। उनके मुताबिक, जब तक आबादी के अनुपात में आरक्षण और भागीदारी नहीं दी जाती, तब तक सामाजिक न्याय अधूरा रहेगा।

हालांकि आलोचकों का मानना है कि जातीय जनगणना एक विभाजक और प्रतिगामी कदम है। संविधान में कहीं भी जाति आधारित जनगणना का उल्लेख नहीं है। यह केवल वोट बैंक की राजनीति को साधने का एक माध्यम बनता जा रहा है।

ध्यान देने योग्य है कि संविधान निर्माताओं ने आरक्षण को एक अस्थायी उपाय माना था, जो सिर्फ 10 वर्षों के लिए लागू किया गया था। लेकिन समय-समय पर इसके विस्तार ने इसे स्थायी स्वरूप दे दिया है। अब कांग्रेस इस पर से सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50 फीसदी की सीमा हटवाने की भी मांग कर रही है।

राहुल गांधी ने यहां तक कहा है कि “फैशन शो में कभी किसी एससी, एसटी या ओबीसी को क्यों नहीं देखा जाता?” उनके इस उदाहरण पर कुछ लोगों ने तीखी आलोचना करते हुए इसे ‘राजनीतिक हास्यास्पदता’ की संज्ञा दी है। आलोचक आशंका जता रहे हैं कि यह मांग आगे चलकर खेल और अन्य क्षेत्रों में भी आरक्षण की मांग को जन्म दे सकती है।

विपक्ष का तर्क है कि यह पूरी प्रक्रिया एक तरह से देश को जातीय आधार पर और अधिक बांटने का काम करेगी, जो संविधान की मूल भावना — समता और अखंडता — के विपरीत है।

बहरहाल, जातीय जनगणना और आरक्षण की बहस अब महज चुनावी मुद्दा नहीं रह गई है, बल्कि यह भारत के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करने वाला एक बड़ा विषय बन चुका है। अब देखना यह होगा कि भाजपा इस मुद्दे पर आगे क्या रणनीति अपनाती है और क्या सच में देश एक नई जातीय गणना और आरक्षण व्यवस्था की ओर बढ़ने को तैयार है?

अमर शर्मा

— विशेष संवाददाता, टिडब्लूएम न्यूज

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