मणिपुर में राष्ट्रपति शासन पर संसद में मंथन,

शाह ने कहा – “शांति बहाली प्राथमिकता”

नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार तड़के लोकसभा में एक प्रस्ताव पेश कर मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की मंजूरी मांगी। इस प्रस्ताव को ध्वनि मत से पारित कर दिया गया, हालांकि, विपक्ष ने इस पर चर्चा के समय और सरकार की कार्यशैली को लेकर कड़ा ऐतराज जताया।

राष्ट्रपति शासन पर तीखी बहस, विपक्ष ने उठाए सवाल

इस प्रस्ताव पर करीब 40 मिनट तक चर्चा हुई, जिसमें आठ विपक्षी सांसदों ने अपनी राय रखी। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन का समर्थन करते हुए कहा कि इसे केवल औपचारिक कदम के रूप में नहीं, बल्कि राज्य में शांति और स्थिरता बहाल करने के लिए उपयोग किया जाना चाहिए।

थरूर ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “पिछले दो वर्षों में decisive action नहीं लिया गया। जब मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दे दिया और विधानसभा सत्र शुरू होने वाला था, तब जाकर राष्ट्रपति शासन लगाया गया।”

उन्होंने मणिपुर की सुरक्षा स्थिति पर चिंता जताते हुए बताया कि राज्य में अब तक करीब 60,000 हथियार और 6 लाख से अधिक कारतूस लूटे जा चुके हैं। उन्होंने कहा, “सशस्त्र समूहों का वर्चस्व बढ़ गया है और राज्य में कानून व्यवस्था नाम की चीज नहीं बची है।”

शाह का पलटवार – “स्थिति नियंत्रण में, जल्द होगी शांति वार्ता”

अपने जवाब में गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया कि बीते चार महीनों में कोई बड़ी हिंसा नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति शासन लागू होने के दो महीने के भीतर सरकार ने इसे संसद में चर्चा के लिए लाया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि केंद्र सरकार स्थिति को गंभीरता से ले रही है।

शाह ने यह भी कहा कि सुरक्षा बलों को उसी दिन एयरलिफ्ट किया गया था, जब हाईकोर्ट के फैसले के बाद अशांति शुरू हुई थी। उन्होंने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा, “हमने तुरंत कार्रवाई की, लेकिन हिंसा को लेकर अलग-अलग व्याख्याएं की गईं, जिससे हालात बिगड़े।”

रात 2 बजे चर्चा पर विपक्ष ने जताई आपत्ति

डीएमके सांसद कनिमोझी करुणानिधि ने चर्चा के समय पर आपत्ति जताते हुए कहा, “हमने लंबे समय से मणिपुर पर बहस की मांग की थी, लेकिन सरकार ने इसे रात 2 बजे के बाद कराने का फैसला किया। यह सरकार की गंभीरता को दर्शाता है।”

उन्होंने सवाल उठाया कि हथियारों की इतनी बड़ी संख्या में लूट कैसे हुई और हिंसक समूहों के हाथों तक कैसे पहुंची। “जब गृह मंत्री ने खुद राज्य में स्वतंत्र आवाजाही का आश्वासन दिया था, तो फिर इतनी हिंसा क्यों हुई?” उन्होंने पूछा।

मणिपुर में जल्द होंगे नए चुनाव?

एनसीपी (शरद पवार गुट) की सांसद सुप्रिया सुले ने शाह की कश्मीर नीति की सराहना करते हुए मणिपुर की स्थिति पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि आप वहां भी मजबूत हस्तक्षेप करेंगे और जल्द निष्पक्ष चुनाव कराएंगे।”

शाह ने जानकारी दी कि गृह मंत्रालय के अधिकारी दोनों समुदायों के साथ बातचीत कर रहे हैं और जल्द ही एक संयुक्त बैठक आयोजित की जाएगी। उन्होंने कहा, “हमारी पहली प्राथमिकता शांति बहाल करना है और अधिकांश क्षेत्रों में स्थिति नियंत्रण में है।”

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू, आगे क्या?

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 13 फरवरी को अनुच्छेद 356 के तहत मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू किया था, चार दिन बाद मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इस्तीफा दे दिया था। राज्य विधानसभा को निलंबित रखा गया है, जिससे भविष्य में संभावित सरकार गठन की गुंजाइश बनी हुई है।

सूत्रों के मुताबिक, सिंह ने तब इस्तीफा दिया जब बीजेपी के 10-12 विधायक पार्टी लाइन से अलग जाने की तैयारी में थे। साथ ही, जातीय संघर्ष के बाद 10 कूकी-जो विधायकों ने पहले ही सिंह से किनारा कर लिया था।

संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत, राष्ट्रपति शासन को संसद के दोनों सदनों से दो महीने के भीतर मंजूरी मिलनी अनिवार्य होती है। अब यह देखना होगा कि राज्य में राजनीतिक अस्थिरता के इस दौर में आगे क्या कदम उठाए जाते हैं।

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