हिन्दी नाट्य साहित्य में एक मील का पत्थर माने जाने वाले मोहन राकेश के नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ ने अपने प्रकाशन (1958) से लेकर अब तक न केवल रंगमंच पर बल्कि सिनेमा के परदे पर भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। इस नाटक को हिन्दी नाटक के आधुनिक युग का प्रथम नाटक भी कहा जाता है।

मोहन राकेश का यह नाटक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित होने के बावजूद मानवीय संवेदनाओं, प्रेम और रचनात्मक संघर्ष का सजीव चित्रण करता है। इसमें कालिदास और मल्लिका के बीच का प्रेम द्वंद, त्याग और सामाजिक यथार्थ का गहरा चित्रण देखने को मिलता है। कालिदास की सफलता और मल्लिका का प्रेम, दोनों जीवन के दो किनारे बनकर सामने आते हैं, जहां एक ओर यश और प्रसिद्धि है, तो दूसरी ओर टूटे हुए प्रेम की करुणा।

इस नाटक की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1959 में इसे ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। इसके बाद विभिन्न प्रसिद्ध निर्देशकों – इब्राहिम अलकाजी, ओम शिवपुरी, श्यामानंद जालान, राम गोपाल बजाज, और अरविंद गौड़ ने इसे मंच पर प्रस्तुत कर इसके प्रभाव को और सशक्त बनाया।

1979 में प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक मणि कौल ने ‘आषाढ़ का एक दिन’ पर आधारित एक फ़िल्म भी बनाई, जिसने अपनी संवेदनशील प्रस्तुति और बेहतरीन निर्देशन के लिए ‘फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार’ जीता। फिल्म में नाटक की मूल भावना को जीवंत बनाए रखते हुए कालिदास के रचनाकार के अंतर्द्वंद और मल्लिका के त्यागपूर्ण प्रेम को बखूबी पर्दे पर उतारा गया।

‘आषाढ़ का एक दिन’ आज भी न केवल रंगमंच बल्कि साहित्य प्रेमियों के लिए एक प्रेरणादायक रचना बनी हुई है। यह नाटक यह दर्शाता है कि रचनाकार का जीवन यश और प्रसिद्धि में सिमटा नहीं होता, बल्कि वह अपनी रचनाओं में जीवन का सत्य खोजता है, भले ही इसके लिए उसे अपने व्यक्तिगत जीवन का त्याग क्यों न करना पड़े।

रिपोर्ट : शिवांशु सिंह सत्या

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