आज का दिन दुनिया भर में मदर टेरेसा की 114वीं जयंती के रूप में मनाया जा रहा है, यह एक ऐसा अवसर है जब हम नोबेल पुरस्कार विजेता इस महान मानवतावादी की जीवन यात्रा और उनके अनमोल योगदान को स्मरण करते हैं। उनकी निःस्वार्थ सेवा आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है।
प्रारंभिक जीवन और मिशन की शुरुआत
26 अगस्त 1910 को स्कोप्जे, मैसेडोनिया में एग्नेस गोंझा बोयाजिजू के रूप में जन्मी, मदर टेरेसा की धार्मिक पृष्ठभूमि ने उनके भविष्य के मिशन की नींव रखी। महज 12 साल की उम्र में उन्हें धार्मिक जीवन का आह्वान महसूस हुआ, और 1928 में उन्होंने अपने परिवार को छोड़कर आयरिश कैथोलिक मिशन, सिस्टर्स ऑफ लोरटो में शामिल हो गईं।
डबलिन में प्रारंभिक प्रशिक्षण के बाद, 1931 में उन्हें कोलकाता में एक स्कूल शिक्षिका के रूप में नियुक्त किया गया। यहीं पर उन्होंने शहर की गहरी गरीबी को करीब से देखा और इसे देखकर उनका हृदय द्रवित हो गया। 1948 में उन्होंने शिक्षण कार्य छोड़कर अपना पूरा जीवन गरीबों और असहायों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने कोलकाता की झुग्गियों में बच्चों के लिए एक खुला स्कूल स्थापित किया और 7 अक्टूबर 1950 को मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की।
यह संगठन दुनियाभर के गरीबों के लिए आशा की किरण बना। मदर टेरेसा की मृत्यु तक, मिशनरीज ऑफ चैरिटी 130 से अधिक देशों में फैल चुका था और उनके मिशन को आगे बढ़ाने के लिए हजारों लोग जुड़ चुके थे।
वैश्विक पहचान और सम्मान
मदर टेरेसा के असाधारण योगदान ने उन्हें कई सम्मान और वैश्विक पहचान दिलाई। 1979 में उन्हें उनके मानवतावादी प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पुरस्कार ग्रहण करते समय उन्होंने कहा था, “अच्छा इंसान होना ही पर्याप्त नहीं है। हमें कर्मशील होना चाहिए। प्रेम अकेले नहीं रह सकता—इसका कोई अर्थ नहीं होता। प्रेम को कर्म में बदलना होता है, और वह कर्म सेवा है।”
नोबेल पुरस्कार के अलावा, उन्हें 1980 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से भी नवाजा गया। इसके अलावा, उन्होंने 1979 में बल्ज़न पुरस्कार और टेम्पलटन व मैगसेसे पुरस्कार भी प्राप्त किए। 2016 में पोप द्वारा संत के रूप में उनके नाम की घोषणा उनके जीवन के कार्यों की गहरी मान्यता थी।
अंतिम वर्ष और विरासत
1997 में मदर टेरेसा का स्वास्थ्य गिरने लगा, जिसके कारण उन्होंने मिशनरीज ऑफ चैरिटी के प्रमुख पद से सेवानिवृत्ति ले ली। उनका उत्तराधिकारी भारतीय नन, सिस्टर निर्मला को चुना गया। 5 सितंबर 1997 को, अपने 87वें जन्मदिन के कुछ ही दिन बाद, कोलकाता में दिल का दौरा पड़ने से मदर टेरेसा का निधन हो गया।
मदर टेरेसा के प्रेरणादायक विचार
मदर टेरेसा की विरासत उनके अनमोल विचारों में भी जीवित है:
– “यदि हमारे पास शांति नहीं है, तो इसका कारण यह है कि हमने एक-दूसरे से जुड़े होने का एहसास खो दिया है।”
– “छोटी-छोटी चीजों में विश्वास रखें क्योंकि इन्हीं में आपकी ताकत निहित होती है।”
– “जब आपके पास कुछ भी नहीं होता, तब आपके पास सब कुछ होता है।”
– “हमेशा मुस्कान के साथ मिलें, क्योंकि मुस्कान प्रेम की शुरुआत है।”
– “दूसरों के लिए जिया हुआ जीवन ही वास्तविक जीवन है।”
आज उनकी जयंती पर हम उनके विचारों को आत्मसात करने और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लें।