टर्मिनेटर को लेकर तारकोव्स्की का दृष्टिकोण: क्या होता अगर रूसी मास्टर बनाते साइ-फाई क्लासिक

रूसी सिनेमा के महान निर्देशक आंद्रेई तारकोव्स्की ने ‘द टर्मिनेटर’ को लेकर एक बार टिप्पणी की थी, जो आज भी सिनेप्रेमियों के लिए चर्चा का विषय है। तारकोव्स्की ने जेम्स कैमरून की इस कल्ट फिल्म की कल्पना को सराहा था और कहा था, “यह फिल्म मानवीय नियति और भविष्य की अवधारणा को सिनेमा में कला के नए आयाम तक ले जाती है।” हालांकि, उन्होंने फिल्म में हिंसा और अभिनय की सतही प्रस्तुति को आलोचना का विषय भी बनाया था।

अगर इस फिल्म को तारकोव्स्की ने निर्देशित किया होता, तो शायद यह एक शांत, दार्शनिक और गहरी आत्मीयता से भरी यात्रा होती। फिल्म में रोबोटिक हिंसा की जगह अस्तित्ववादी पीड़ा और मानवीय त्रासदी को तरजीह दी जाती। फिल्म का मुख्य पात्र, टर्मिनेटर, संभवतः तारकोव्स्की की ‘सोलारिस’ या ‘स्टॉकर’ के नायक जैसा होता – उदास आँखों में एक खोए हुए भविष्य की छवि लिए, प्रेम और मुक्ति की तलाश में भटकता। पुलिस स्टेशन का बाहरी दृश्य किसी दलदली इलाके या धुंध भरे मैदान में तब्दील हो जाता, जहां टर्मिनेटर अपने शिकार सारा कॉनर को खोजते हुए कैंडल हाथ में लिए सिसकता हुआ चलता। बैकग्राउंड में एडुआर्ड आर्टेमयेव का इलेक्ट्रोएकॉस्टिक संगीत बजता, जो फिल्म में एक रहस्यमय, स्वप्निल माहौल रचता।

तारकोव्स्की की फिल्मों में हिंसा प्रतीकात्मक थी, जो पात्रों की मानसिक स्थिति को व्यक्त करती थी। ‘आंद्रेई रूबलेव’ में जलते हुए घोड़े और निर्ममता से निकाली गई आँखें या ‘सोलारिस’ में हरी का बार-बार मरना, उनकी फिल्मों में त्रासदी और मानवीय पीड़ा का प्रतीक थी। वहीं, कैमरून की ‘टर्मिनेटर’ में विस्फोटक एक्शन मुख्य आकर्षण था, जो अधिक व्यावसायिक था।

तारकोव्स्की का विज्ञान-फंतासी के प्रति आकर्षण कोई रहस्य नहीं था। उन्होंने अपने जीवन के दस वर्ष दो महत्वपूर्ण पूर्वी यूरोपीय साहित्यिक कृतियों – ‘सोलारिस’ और ‘पिकनिक ऑन द रोडसाइड’ – को सिनेमा में ढालने में लगा दिए। उनका मानना था कि विज्ञान-फंतासी को महज तकनीकी चमत्कार नहीं, बल्कि मानवीय संवेदना का दर्पण होना चाहिए।

तारकोव्स्की का दुर्भाग्यपूर्ण निधन उनकी ही फिल्म ‘स्टॉकर’ के दौरान हुए जहरीले शूटिंग लोकेशन का परिणाम माना जाता है। फिल्म के धुंआधार दृश्य असल में एक प्रदूषित नदी के थे, जिसमें जहरीले रसायन बहाए जा रहे थे। इसके चलते तारकोव्स्की, उनकी पत्नी और मुख्य अभिनेता अनातोली सोलोनित्सिन कैंसर के शिकार हो गए।

अगर तारकोव्स्की जीवित रहते, तो क्या वह आज की डिजिटल दुनिया में कैमरून जैसे CGI-heavy अवतार नहीं, बल्कि गहरे, मानवीय और आत्मीय विज्ञान-फंतासी रचते? यह कल्पना ही सिनेमाप्रेमियों को रोमांचित कर जाती है।

रिपोर्ट: निहाल देव दत्ता

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