पाकिस्तान: एक अस्थिर राष्ट्र की गूंजती विचारधारा
धार्मिक कट्टरता और भारत-विरोधी मानसिकता ने राष्ट्रीय विकास की राह रोकी
धार्मिक पहचान और भारत-विरोध के आधार पर गठित पाकिस्तान आज भी अपनी उसी वैचारिक ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ है, जिसने इसके लोकतांत्रिक विकास को कमजोर किया है और आतंकवाद को खाद-पानी दिया है। पाक सेना के वर्तमान प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को एक सैन्य रणनीतिकार के रूप में नहीं, बल्कि एक ‘हाफ़िज़-ए-कुरान’ के तौर पर प्रचारित किया जाना इस विचारधारा का जीवंत उदाहरण है।
जन्म के समय से ही वैचारिक असमंजस
लेखक सलमान रुश्दी ने एक बार पाकिस्तान को “पर्याप्त रूप से कल्पना न किया गया राष्ट्र” कहा था। पाकिस्तान का निर्माण एक योजनाबद्ध राष्ट्रीय दृष्टिकोण के तहत नहीं, बल्कि भारत के प्रति विरोध की भावना से हुआ था। इसका नतीजा यह हुआ कि देश की राष्ट्रीयता ‘ला इलाहा इलल्लाह’ जैसे नारों में सिमट गई और भारत विरोध इसकी पहचान बन गई।
धार्मिक आदर्श और सैन्य गठजोड़
1947 में स्थापित इस राष्ट्र को एक इस्लामिक यूटोपिया बनाने की कोशिश धार्मिक नेताओं और सैन्य तंत्र ने मिलकर की। मौलाना शब्बीर अहमद उस्मानी जैसे नेताओं ने पाकिस्तान को ‘मदीना मॉडल’ का आधुनिक रूप माना, जहां भाषा, जाति, क्षेत्र जैसी सीमाएं नहीं होंगी—परंतु वास्तविकता इससे कोसों दूर निकली।
जनरल ज़िया-उल-हक़ के समय से पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर को केवल भौगोलिक संघर्ष न मानकर, एक धार्मिक मिशन का दर्जा दे दिया। जनरल मुनीर द्वारा अप्रैल में दिया गया भाषण जिसमें उन्होंने कश्मीरियों के ‘शौर्य’ की बात की, इसी विचार की पुष्टि करता है।
मदरसों से आतंक तक का सफर
देशभर में फैले मदरसों और सेना के बीच की वैचारिक साझेदारी ने पाकिस्तान में चरमपंथ को मज़बूत किया। कई मदरसे आज आतंकवाद की फैक्ट्रियां बन चुके हैं, जहां युवाओं को भारत-विरोध और मज़हबी जिहाद का प्रशिक्षण दिया जाता है। ‘हज़ार ज़ख्मों से भारत को रक्तस्राव’ की रणनीति इसी मानसिकता की उपज है।
कश्मीर में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले, जिसमें निर्दोष नागरिकों को कलमा पढ़वाकर मारा गया, इस धार्मिक उन्माद की विभीषिका को दर्शाते हैं। यह वह कश्मीर है, जिसे पाकिस्तान अपनी ‘शरीक़ रग’ यानी ‘जगुलर वेन’ कहता है।
राजनीतिक पाखंड और स्वीकृत सच्चाइयाँ
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने खुलेआम स्वीकार किया था कि कैसे उनके देश ने दशकों तक आतंकवादी संगठनों को वित्तपोषित किया। संसद में तो उन्होंने मदरसों के छात्रों को देश की “दूसरी रक्षा पंक्ति” बता दिया, जो राज्य और आतंक के गठबंधन की बेशर्मीभरी स्वीकारोक्ति है।
एक रहस्यमयी घटना और सच्चाई का प्रतीक
1955 में लंदन में आयोजित एक सेन्स (मृत आत्मा से संवाद) की घटना भी पाकिस्तान की वैचारिक उलझनों की प्रतीक बन चुकी है। मोहम्मद अली जिन्ना की आत्मा से संवाद के दौरान एक शख्स इब्राहीम ने दावा किया कि जिन्ना की आत्मा ने कहा, “देश पाना आसान है, पर उसे संभालना बेहद कठिन। यही पाकिस्तान की आज की हकीकत है।”
कट्टर धार्मिक सोच, भारत विरोध और सैन्य-धार्मिक गठजोड़ ने पाकिस्तान को एक प्रगतिशील लोकतंत्र बनने से रोके रखा है। आज भी वहां की नीति और विचारधारा उस मानसिकता से निर्देशित होती है, जो आधुनिक विश्व व्यवस्था के मूल्यों से टकराती है। जब तक पाकिस्तान अपनी पहचान को नए सिरे से नहीं गढ़ता, तब तक उसका भविष्य अस्थिर ही रहेगा।
लेखक: अमर शर्मा ,राष्ट्रीय ब्यूरो
संपादन: नीति विश्लेषण डेस्क, TWM News