सिकंदर: सलमान की मल्टीस्टारर फिल्म दर्शकों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी

सलमान खान की बहुप्रतीक्षित फिल्म सिकंदर दर्शकों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। निर्देशक ए.आर. मुरुगदॉस की इस फिल्म ने न सिर्फ कहानी बल्कि अभिनय और निर्देशन के स्तर पर भी निराश किया।

कहानी:
फिल्म की कहानी राजकोट के महाराजा सिकंदर (सलमान खान) के इर्द-गिर्द घूमती है। उनकी पत्नी (रश्मिका मंदाना) की मृत्यु के बाद, उनके अंग तीन अलग-अलग व्यक्तियों को दान कर दिए जाते हैं। सिकंदर मुंबई जाकर उन लोगों से मिलता है, जिनकी जिंदगी उनकी पत्नी के अंगों से जुड़ी होती है। इसी मुलाकात के इर्द-गिर्द फिल्म की पूरी कहानी बुनी गई है।

निर्देशन और पटकथा:
फिल्म की शुरुआत ठीक-ठाक है, लेकिन पहले 30 मिनट के बाद ही इसकी पटकथा बेजान लगने लगती है। पहले भाग में भरपूर एक्शन और कुछ ऊटपटांग सी मास एंट्री सीन देखने को मिलते हैं, जो दोहराव भरे लगते हैं। वहीं, दूसरे भाग में फिल्म पूरी तरह बिखर जाती है। कहानी में नयापन नहीं है और भावनात्मक दृश्य जबरदस्ती ठूंसे गए लगते हैं। निर्देशन में भी ताजगी की कमी नजर आती है।

अभिनय:
सलमान खान पूरे समय थके हुए से लगते हैं और उनका अभिनय प्रभाव छोड़ने में नाकाम रहता है। रश्मिका मंदाना के साथ उनकी केमिस्ट्री भी फीकी है। सहायक भूमिकाओं में शरमन जोशी और काजल अग्रवाल जैसे कलाकार हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल केवल सलमान को ‘लार्जर दैन लाइफ’ दिखाने के लिए किया गया है। सत्यराज, जो फिल्म में प्रतिपक्षी की भूमिका में हैं, उनके किरदार में दम नहीं है।

संगीत:
फिल्म का संगीत भी निराशाजनक है। प्रीतम का म्यूजिक और संतोष नारायण का बैकग्राउंड स्कोर प्रभाव नहीं छोड़ता। खासकर, लता मंगेशकर के अमर गीत “लग जा गले” का फिल्म में इस्तेमाल कई दर्शकों को अखरता है।

सकारात्मक पक्ष:
फिल्म में कुछ एक्शन दृश्य जरूर हैं, जो सलमान के प्रशंसकों को आकर्षित कर सकते हैं, लेकिन ये भी फिल्म को बचाने में नाकाम रहते हैं।

नकारात्मक पक्ष:
फिल्म का कमजोर निर्देशन, घिसी-पिटी पटकथा और औसत दर्जे का अभिनय इसे पूरी तरह से निराशाजनक बनाता है।

निर्णय:
अगर आप सलमान खान के कट्टर प्रशंसक हैं, तो ही इसे देखना उचित होगा, अन्यथा यह फिल्म निराश ही करेगी।

रिपोर्ट : शिवांशु सिंह सत्या

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