सिंदूर से संग्राम तक: जब मीडिया की सीमाएं धुंधली हो गईं
— पत्रकारिता के नैतिक संकट में फंसा राष्ट्रवाद और सूचनाओं का युद्ध

भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव और ऑपरेशन सिंदूर ने जहां भारत की सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक प्रतीकों की ताकत को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया, वहीं मीडिया की भूमिका पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। शब्दों की शक्ति अब तलवारों से कम नहीं, लेकिन क्या यह बदलाव मीडिया की मर्ज़ी से हुआ है?

ऑपरेशन सिंदूर: केवल सैन्य कार्रवाई नहीं, एक सांस्कृतिक बयान

जब भारत ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और पीओके में नौ आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त किया, तब यह केवल एक जवाबी कार्रवाई नहीं थी, बल्कि उन विधवाओं को श्रद्धांजलि भी थी जिनके पति पहलगाम हमले में आतंकवाद का शिकार बने थे। ‘सिंदूर’ का नाम अपने आप में एक भावनात्मक और सांस्कृतिक संदेश था—जिस रिश्ते को आतंक ने छीना, उसे राष्ट्र ने बदला लिया।

एक साझा संदेश: महिला नेतृत्व और धार्मिक समरसता का प्रदर्शन

इस सैन्य अभियान के बाद मीडिया ब्रीफिंग के लिए दो महिला सैन्य अधिकारी—कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को आगे लाया गया। यह निर्णय केवल रणनीतिक नहीं बल्कि एक शक्तिशाली संदेश भी था: भारत में एक मुस्लिम महिला सेना में नेतृत्व की भूमिका निभा सकती है, जबकि पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यक हाशिये पर हैं।

इस घटनाक्रम ने भारत की सामाजिक विविधता, महिलाओं की भागीदारी और लोकतांत्रिक मूल्यों की ताकत को दुनिया के सामने रखा।

मीडिया की परीक्षा: कब राष्ट्रवाद बनता है भटकाव का रास्ता

हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम में भारतीय मीडिया का एक पक्ष अत्यंत चिंता का विषय बना। राष्ट्रभक्ति की आड़ में कई मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने ऐसी झूठी खबरें परोसीं जो न केवल असत्य थीं बल्कि देश की साख पर भी असर डाल सकती थीं—जैसे कि ‘कराची पोर्ट पूरी तरह तबाह’, ‘जनरल मुनीर गिरफ्तार’ जैसी खबरें। इन खबरों का सत्य से कोई लेना-देना नहीं था और जल्द ही सोशल मीडिया पर इनका मज़ाक उड़ाया गया।

सावधानी की चेतावनी: रक्षा मंत्रालय की मीडिया को हिदायत

रक्षा मंत्रालय को इस बढ़ती अफवाहबाज़ी के बीच मीडिया को चेतावनी जारी करनी पड़ी, जिसमें लाइव कवरेज, सेना की मूवमेंट की रियल-टाइम रिपोर्टिंग और सोर्स आधारित संवेदनशील सूचनाओं से दूर रहने को कहा गया। मंत्रालय ने 26/11, कारगिल और कंधार जैसी घटनाओं का हवाला देते हुए याद दिलाया कि अनियंत्रित रिपोर्टिंग जान जोखिम में डाल सकती है।

झूठ और प्रतीकों के बीच की महीन रेखा

जरूरी है कि हम प्रतीकात्मकता और झूठ के फर्क को समझें। जहां प्रतीक किसी भावना को मजबूत करते हैं, वहीं झूठ राष्ट्र की विश्वसनीयता को चोट पहुंचाते हैं। भारत सरकार ने जिस तरह ऑपरेशन सिंदूर को एक रणनीतिक, सांस्कृतिक और मानवीय प्रतिक्रिया के रूप में पेश किया, वह प्रशंसनीय है। लेकिन मीडिया को भी आत्मनिरीक्षण करना होगा कि क्या टीआरपी की होड़ में वह अपनी नैतिकता से समझौता कर रहा है?

वास्तविक ताकत की कहानी बताना जरूरी

भारत की असली ताकत उसकी मिसाइलों में नहीं, बल्कि उस सामाजिक ताने-बाने में है जिसमें एक हिंदू बहुल राष्ट्र एक मुस्लिम महिला अधिकारी को आतंक के खिलाफ कार्रवाई की आवाज बनाता है। मीडिया को यही कहानी दुनिया को सुनानी चाहिए—एक ऐसे समाज की, जहां विविधता देश की ताकत बनती है, कमजोरी नहीं।

रिपोर्ट : शिवांशु सिंह सत्या

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