रोहित शेट्टी की ‘सिंघम अगेन’ को एक बेहतरीन मसाला फिल्म के रूप में पेश करने की कोशिश की गई है, लेकिन यह फिल्म अपने पुराने ढर्रे से बाहर नहीं निकल पाती। पूरी फिल्म में एक ही पैटर्न नजर आता है – हर अभिनेता की एंट्री म्यूजिक के साथ, फिर एक्शन, डायलॉग और फिर वही सिलसिला दोहराना। यह रूपांतर फिल्म को एक पुराने जमाने की फिल्म का एहसास देता है।
रामलीला के दृश्य कुछ जगहों पर मनोरंजक हैं, लेकिन अचानक और जबरदस्ती जोड़े हुए लगते हैं, मानो सिर्फ इस सोच के साथ कि “रामलीला जोड़ दी है तो कोई बुरा नहीं बोलेगा।” सिंबा का हास्य कुछ हद तक आकर्षित करता है, लेकिन इसका प्रभाव भी सीमित है। अर्जुन कपूर और अक्षय कुमार की एंट्री में ताजगी और दमखम है, लेकिन फिल्म की कमजोर पटकथा उन्हें पूरी तरह से भुनाने में नाकाम साबित होती है।
हालांकि, फिल्म को एक मसाला मनोरंजन के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन इस शैली में कई बेहतर फिल्में मौजूद हैं जिनमें सिनेमाटोग्राफी, निर्देशन और कहानी कहीं ज्यादा प्रभावशाली हैं। ‘सिंघम अगेन’ उम्मीदों के बावजूद अधूरी सी महसूस होती है, और यह दर्शकों को वह अनुभव देने में असफल रहती है जो एक उच्च स्तरीय मसाला फिल्म से अपेक्षित है।