(पटना, 27 मार्च) – विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर बिहार में रंगकर्म को जीवंत रखने वाले कलाकारों ने थिएटर की महत्ता और इसकी सांस्कृतिक भूमिका पर अपने विचार साझा किए। थिएटर समूह आर्ट मंजूषा से जुड़े शिवांशु सिंह सत्य और शिवम पांडे का मानना है कि रंगमंच केवल अभिनय का माध्यम नहीं, बल्कि समाज को जागरूक करने और युवाओं को रचनात्मक दिशा देने का सशक्त जरिया है।

थिएटर से सीख और शिक्षा:
शिवांशु सिंह सत्य, जो सेंट जेवियर्स कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी, पटना के पूर्व छात्र हैं, थिएटर के प्रति अपने जुनून के बारे में बताते हैं, “कॉलेज के दिनों में थिएटर सिर्फ एक रुचि थी, लेकिन समय के साथ यह जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया।” उन्होंने अपने सीनियर योगी दा और साथी निहाल कुमार दत्ता के साथ मिलकर थिएटर को एक सशक्त माध्यम बनाने का प्रयास किया। शिवांशु बताते हैं, “हम बिहार के अलग-अलग जिलों से आए कॉलेज छात्रों को जोड़कर थिएटर के माध्यम से उनकी कला को निखारने का प्रयास कर रहे हैं। हम खुद भी सीखते हैं और बच्चों को भी सिखाते हैं।”

रंगमंच का बढ़ता प्रभाव:
आर्ट मंजूषा समूह के माध्यम से वे युवाओं को थिएटर में सक्रिय रूप से जोड़ रहे हैं। इस समूह में नियति कश्यप, प्रतीक्षा राज, अंशु कुमार, आशु कुमार, जुबेरिया, सौरव कुमार सोनी और अक्षय यादव समेत कई कॉलेज छात्र जुड़कर थिएटर का अभ्यास कर रहे हैं। शिवम पांडे बताते हैं, “थिएटर केवल मंच तक सीमित नहीं, यह जीवन का आईना है। हमारे नाटकों में समाज के मुद्दों को उठाया जाता है, जिससे युवाओं को सोचने और सवाल करने की प्रेरणा मिलती है।”

थिएटर को प्रोत्साहन देने में कॉलेज का योगदान:
शिवांशु रंगमंच को प्रोत्साहित करने में सेंट जेवियर्स एलुमनाई एसोसिएशन का विशेष आभार जताते हैं। वे कहते हैं, “रंजन कुमार और जय सिंह राठौर जैसे लोग हमारी कला को हमेशा बढ़ावा देते हैं। जब भी हमारे नाटक  में होते हैं, वहां के  प्रोफेसर और छात्र समय निकालकर हमें प्रोत्साहित करने पहुंचते हैं।”

थिएटर का भविष्य:
शिवांशु और शिवम का मानना है कि बिहार में थिएटर की मजबूत जड़ें हैं, बस इसे सही दिशा और मंच देने की जरूरत है। वे कहते हैं, “हमारा प्रयास है कि आने वाले समय में और बेहतरीन नाटक करें, जिससे थिएटर को नई ऊंचाई मिले और युवाओं को इसमें करियर की संभावनाएं दिखें।”

विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर आर्ट मंजूषा का यह प्रयास रंगमंच को सजीव रखने के साथ-साथ बिहार की सांस्कृतिक विरासत को भी आगे बढ़ा रहा है।

 

रिपोर्ट: अनिरुद्ध नारायण

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