विश्व रंगमंच दिवस पर विशेष साक्षात्कार

पटना। “रंगमंच सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज को जागरूक करने का एक सशक्त माध्यम है। मेरा सपना है कि इसे व्यावसायिक स्तर पर ले जाऊं, ताकि कलाकारों को भी इसका उचित लाभ मिल सके।” ये कहना है रंगकर्मी रास राज का, जिन्होंने विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर विशेष बातचीत में अपने सफर, संघर्ष और लक्ष्यों को साझा किया।

प्रेरणा से मिली उड़ान, रंगमंच बना जीवन
2006 में पटना की नाट्य संस्था ‘प्रेरणा’ से जुड़कर रास राज ने रंगमंच की दुनिया में कदम रखा। प्रेमचंद लिखित और हसन इमाम निर्देशित नाटक रंगभूमि में पहली बार अभिनय किया। इसके बाद उन्होंने हैमलेट, कालिगुला, जानेमन, कंजूस, अबू हसन, एक था गधा उर्फ अलादाद खाँ, दरोगा जी चोरी हो गई, अम्बेडकर और गांधी, परमिथियस बॉन्ड जैसे दर्जनों नाटकों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया।

सिर्फ अभिनय नहीं, निर्देशन और लेखन में भी महारत
रास राज ने मंच पर अभिनय के साथ-साथ नाट्य लेखन, परिकल्पना, सेट डिज़ाइन और निर्देशन में भी अपनी प्रतिभा साबित की। उन्होंने इस मझधार में, अजनबी, खोजत भए अधेड़, सब कुछ सड़क पर, अकेली, प्रोवोक्ड, काली सलवार, जिद, प्रेम कबूतर, जोरबी और दूसरा आदमी दूसरी औरत जैसे नाटकों का लेखन और निर्देशन किया।

राष्ट्रीय स्तर के दिग्गजों से मिली प्रेरणा
रास राज ने हबीब तनवीर, प्रसन्ना जी, आसिफ अली हैदर खाँ, त्रिपुरारी शर्मा, सतीश आलेकर, मानवेन्द्र त्रिपाठी, हसन इमाम, रवि मिश्रा, तनवीर अख़्तर, सुधन्वा देशपांडे और वंदना वशिष्ट जैसे राष्ट्रीय स्तर के रंग निर्देशकों से प्रशिक्षण लिया। उनके मार्गदर्शन ने रास राज को रंगमंच की गहराई से परिचित कराया।

‘रंगम’ के जरिए रंगकर्म को नई पहचान
2017 में रास राज ने युवा रंगकर्मियों के साथ मिलकर ‘रंगम’ नामक नाट्य संस्था की स्थापना की। 2018-2019 में इसे बिहार सरकार के निबंधन विभाग में पंजीकृत कराया गया। ‘रंगम’ के बैनर तले उन्होंने 26/11 फ्लैशबैक, प्रोवोक्ड, काली सलवार, जिद, प्रेम कबूतर, मोहब्बत के साइड इफेक्ट्स, पाणीग्रहण और शारदा जैसे नाटकों का सफल मंचन किया।

रंगम को मिली राष्ट्रीय पहचान
2021-2022 में ‘रंगम’ को भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से रेपर्टरी ग्रांट प्राप्त हुई, जिससे संस्था को आर्थिक मजबूती मिली। इससे कलाकारों को बेहतर मंच मिला और प्रस्तुतियों की संख्या में वृद्धि हुई।

नई पीढ़ी को मंच देने का प्रयास
रास राज नए कलाकारों को निरंतर मंच देने का प्रयास कर रहे हैं। उनका मानना है कि “बिहार के रंगमंच को जीवंत और प्रासंगिक बनाए रखने के लिए युवाओं को आगे लाना बेहद जरूरी है।”

थियेटर शिक्षा और सरकारी मान्यता
रास राज ने 2017 में आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय से ‘थियेटर स्टेज एंड क्राफ्ट’ में डिप्लोमा किया। 2018 में संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ने उन्हें जूनियर फेलोशिप से सम्मानित किया, जो उनके रंगमंचीय योगदान का प्रमाण है।

सपना: रंगमंच को वैश्विक मंच तक ले जाना
रास राज का कहना है, “मेरा सपना है कि बिहार का रंगमंच सिर्फ क्षेत्रीय मंच तक सीमित न रहे, बल्कि इसे वैश्विक स्तर पर पहचान मिले। रंगमंच को व्यावसायिक बनाकर कलाकारों को भी इसका उचित सम्मान और आय मिलनी चाहिए।”

विश्व रंगमंच दिवस पर रास राज का यह संकल्प न केवल उनके जुनून को दर्शाता है, बल्कि बिहार के रंगमंच को एक नई दिशा देने का भी संकेत देता है।

 

 

रिपोर्ट: अनिरुद्ध नारायण

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