जमीन के बदले नौकरी घोटाला : लालू प्रसाद को हाईकोर्ट से झटका, ट्रायल रोकने की याचिका खारिज
जमीन के बदले नौकरी घोटाले में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख और पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव को दिल्ली हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट ने उनके द्वारा ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति रविंदर डूडेजा की अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए कोई ठोस और पर्याप्त कारण नहीं है।
हालांकि अदालत ने लालू यादव की उस याचिका पर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को नोटिस जारी किया है, जिसमें उन्होंने एफआईआर और आरोपपत्रों को रद्द करने की मांग की है। अदालत ने सीबीआई से छह हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है और अगली सुनवाई की तारीख 12 अगस्त तय की है।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, “चूंकि चार्ज तय करने को लेकर विशेष अदालत में बहस होनी है, इसलिए याचिकाकर्ता के पास सभी दलीलें ट्रायल कोर्ट में रखने का पूरा अवसर है। यह उनके लिए अतिरिक्त अवसर होगा और ऐसे में ट्रायल पर रोक लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है।” यह आदेश 29 मई को पारित हुआ और 31 मई को सार्वजनिक हुआ।
यह मामला 2004 से 2009 के बीच लालू यादव के रेल मंत्री रहते हुए जबलपुर स्थित वेस्ट सेंट्रल रेलवे जोन में ग्रुप-डी की भर्तियों से जुड़ा है। आरोप है कि इन भर्तियों के एवज में चयनित उम्मीदवारों या उनके परिवार वालों से लालू परिवार या उनसे जुड़े लोगों के नाम जमीन हस्तांतरित करवाई गई थी।
याचिका में लालू प्रसाद ने न केवल 2022 में दर्ज एफआईआर बल्कि 2022, 2023 और 2024 में दाखिल आरोपपत्रों को भी रद्द करने की मांग की थी। साथ ही कहा कि जांच और एफआईआर बिना जरूरी स्वीकृति (सेक्शन 17A, भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम) के हुई, जो कानून के तहत अनिवार्य है।
राजद प्रमुख की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि बिना पूर्व अनुमति के हुई जांच पूरी तरह से अवैध है और अब चार्ज फ्रेमिंग की प्रक्रिया को भी रोका जाए, जो कि 2 जून से शुरू होनी है।
वहीं सीबीआई की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डीपी सिंह ने इस याचिका का विरोध करते हुए कहा कि धारा 19 के तहत आवश्यक स्वीकृति ली जा चुकी है, जिससे अदालत को आरोप तय करने का अधिकार प्राप्त है। उन्होंने कहा कि “यह एक गंभीर मामला है जहां मंत्री पद का दुरुपयोग करते हुए नौकरियों के बदले जमीन ली गई। मामला पूरी तरह भ्रष्टाचार से जुड़ा है।”
गौरतलब है कि यह केस सीबीआई ने 18 मई 2022 को लालू यादव, उनकी पत्नी, बेटियों और कई अज्ञात सरकारी अधिकारियों व निजी व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज किया था। याचिका में यह भी कहा गया कि 14 वर्षों की देरी से हुई एफआईआर और इससे पहले की गई जांच की जानकारी छिपाना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।