65 रुपये से शुरू हुई भक्ति की क्रांति: जब ‘जय संतोषी मां’ ने सिनेमाघरों को मंदिर बना दिया

साल 1975 में एक ऐसी फिल्म आई जिसने भारतीय सिनेमा को चौंका कर रख दिया। पहले दिन बॉक्स ऑफिस पर महज़ 65 रुपये की कमाई करने वाली इस फिल्म को फ्लॉप कहकर नज़रअंदाज़ कर दिया गया था। लेकिन कुछ ही हफ्तों में यह फिल्म एक आस्था का जनआंदोलन बन गई। फिल्म थी — ‘जय संतोषी मां’, जिसने न सिर्फ दर्शकों की श्रद्धा जीत ली, बल्कि साल की दूसरी सबसे बड़ी हिट फिल्म के रूप में इतिहास रच दिया।

शुरुआत में नज़रों से उतरी, फिर दिलों में बस गई
इस फिल्म की शुरुआत इतनी फीकी रही कि डिस्ट्रीब्यूटर तक इसे खरीदने से हिचक रहे थे। लेकिन जैसे-जैसे लोगों के बीच इसकी बात फैली, फिल्म की लोकप्रियता रामायण की कथा की तरह घर-घर पहुंच गई। वर्ड ऑफ माउथ पब्लिसिटी ने इसे वो ताक़त दी जो किसी भी बड़े स्टार या भारी प्रचार से नहीं मिलती।

जब सिनेमाघर बने श्रद्धा के केंद्र
गांव-देहात से लोग बैलगाड़ियों में भरकर फिल्म देखने आते थे। महिलाएं चप्पलें बाहर उतारकर थिएटर में प्रवेश करतीं। पर्दे पर जब संतोषी मां की छवि दिखती, तो सिक्कों की बारिश शुरू हो जाती। सिनेमाघर मंदिर में बदल जाते थे।

शोले के साथ टक्कर में, लेकिन मिज़ाज अलग
इस फिल्म ने शोले जैसी बहुप्रचारित फिल्म के साथ रिलीज़ होकर भी पहले हफ्तों में उससे बेहतर प्रदर्शन किया। जबकि शोले को दर्शकों का प्यार धीरे-धीरे मिला, जय संतोषी मां को जनता की भक्ति ने तुरंत गले लगा लिया।

कम बजट, बड़ा विस्फोट
महज़ 30 लाख रुपये में बनी इस फिल्म ने करीब 5 करोड़ रुपये की कमाई की और लगभग 50 हफ्तों तक सिनेमाघरों में चली। यह उस दौर के लिए असंभव सा प्रतीत होने वाला चमत्कार था।


क्या आप जानते हैं?

  • पहले दिन की कमाई: 65 रुपये (मुंबई)
  • कुल बजट: 30 लाख रुपये
  • कुल कमाई: 5 करोड़ रुपये
  • थिएटर में चलने की अवधि: 50 हफ्ते
  • चप्पलें बाहर, सिक्के पर्दे पर — ऐसा था दर्शकों का भक्ति-भाव

रिपोर्ट : शिवांशु सिंह सत्या

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