ड्रॉइंगरूम की शान था यह म्यूजिक सिस्टम, जब धुनों पर झूमते थे लोग
एक दौर था जब घरों में संगीत सुनने का अंदाज अलग ही होता था। बड़े स्पीकर्स, दमदार बास और दो कैसेट प्लेयर वाले म्यूजिक सिस्टम, खासकर आईवा, सोनी और फिलिप्स जैसी कंपनियों के, ड्रॉइंगरूम की शान हुआ करते थे। इनकी मौजूदगी रुतबे और संगीत प्रेम का प्रतीक मानी जाती थी।
जब डिजिटल म्यूजिक और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म का दौर नहीं था, तब कैसेट्स का एक अलग ही क्रेज हुआ करता था। हर संगीत प्रेमी के पास अपने पसंदीदा कलाकारों की कैसेट्स का कलेक्शन होता था। किसी की अलमारी में गुलाम अली की ग़ज़लें सजती थीं, तो किसी के पास कुमार सानू और उदित नारायण के रोमांटिक नगमे। मोहम्मद रफी, किशोर कुमार और लता मंगेशकर के गीत हर घर में गूंजते थे। जो लोग अपनी पसंदीदा प्लेलिस्ट खुद बनाना चाहते थे, वे रिकॉर्डिंग वाले ब्लैंक कैसेट्स में रेडियो या अन्य कैसेट्स से गाने रिकॉर्ड कर लिया करते थे।
म्यूजिक सिस्टम के विशाल बास बूस्टर स्पीकर्स इसकी सबसे बड़ी खासियत हुआ करते थे। जब इसे फुल वॉल्यूम पर चलाया जाता, तो दीवारें तक थर्रा उठतीं और पूरा माहौल संगीतमय हो जाता। किसी भी पार्टी, त्योहार या महफिल में यह सिस्टम म्यूजिक लवर्स की पहली पसंद था। इक्वलाइज़र की हिलती हुई लाइटें और चमकदार एलईडी डिस्प्ले इसे देखने में और भी आकर्षक बनाती थीं।
90 के दशक में युवा वर्ग के बीच इस सिस्टम का खासा क्रेज था। नए जमाने के लड़के इसकी साउंड क्वालिटी और बास की ताकत दिखाने के लिए ‘बूम बूम’ जैसे तेज बीट्स वाले गाने बजाया करते थे। कई बार पड़ोसी भी इसकी तेज आवाज से परेशान होकर दरवाजा खटखटाने आ जाते थे। और अगर किसी के पास यह म्यूजिक सिस्टम होता, तो वह अपने इलाके का ‘कूल डूड’ माना जाता था।
हालांकि, समय के साथ तकनीक बदली और इन सिस्टम्स की जगह सीडी प्लेयर्स, एमपी3 प्लेयर्स और अब स्मार्टफोन व ब्लूटूथ स्पीकर्स ने ले ली। लेकिन उन म्यूजिक सिस्टम्स का दौर आज भी संगीत प्रेमियों की यादों में जिंदा है। यह सिर्फ एक म्यूजिक प्लेयर नहीं था, बल्कि एक एहसास था, जो सुनहरी यादों के सुरों में आज भी झंकृत होता है।