डिजिटल निगरानी को मिलेगी खुली छूट, नागरिकों की निजता पर मंडराया खतरा
नई दिल्ली। संसद के आगामी मानसून सत्र में पेश होने वाले नए आयकर विधेयक 2025 को लेकर देशभर में बहस छिड़ गई है। इस विधेयक में आयकर विभाग को डिजिटल स्पेस में व्यापक अधिकार देने का प्रावधान है, जिससे कर चोरी रोकने की आड़ में प्रशासनिक अतिक्रमण की आशंका बढ़ गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कानून नागरिकों की निजता को खतरे में डाल सकता है, क्योंकि इसमें डिजिटल संचार, एन्क्रिप्टेड चैट और वर्चुअल डिजिटल संपत्तियों तक कर अधिकारियों को पहुंच देने का प्रस्ताव है।
डिजिटल जासूसी का अधिकार
नए विधेयक में आयकर अधिकारियों को व्हाट्सएप, टेलीग्राम, ईमेल और क्लाउड स्टोरेज जैसी निजी डिजिटल संचार सेवाओं तक पहुंचने की छूट दी गई है। इतना ही नहीं, वे सुरक्षा पासवर्ड को भी तोड़कर डिजिटल खातों में प्रवेश कर सकेंगे। इसका उद्देश्य कर चोरी करने वालों की डिजिटल संपत्ति का पता लगाना बताया जा रहा है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि बिना न्यायिक निगरानी के ऐसे अधिकार देना नागरिक स्वतंत्रता का हनन है।
गोपनीयता पर सवाल
इस विधेयक में धारा 249 के तहत जांच का कारण गोपनीय रखने का प्रावधान किया गया है, जिससे करदाताओं के लिए अपने बचाव में कानूनी चुनौती देना मुश्किल हो जाएगा। इसका मतलब यह है कि अधिकारी बिना कोई कारण बताए डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की निगरानी कर सकते हैं, जो निजता के अधिकार का उल्लंघन है।
क्रिप्टोकरेंसी पर शिकंजा
नए विधेयक में ‘अघोषित आय’ की परिभाषा का विस्तार करते हुए इसमें क्रिप्टोकरेंसी और डिजिटल टोकन को भी शामिल किया गया है। जबकि भारत में अभी तक क्रिप्टोकरेंसी को लेकर स्पष्ट कानूनी ढांचा नहीं है। ऐसे में, इसे अघोषित आय मानना निवेशकों और फिनटेक कंपनियों के लिए अनुचित हो सकता है।
कर संरचना में सुधार के दावे
हालांकि, नए विधेयक में कई सुधारात्मक कदम भी उठाए गए हैं। इसमें ‘आकलन वर्ष’ (Assessment Year) और ‘पूर्व वर्ष’ (Previous Year) की जगह ‘कर वर्ष’ (Tax Year) का प्रावधान किया गया है, जिससे कर प्रणाली को सरल और पारदर्शी बनाने का प्रयास किया गया है। साथ ही, स्टॉक ऑप्शन्स (ESOPs) पर कर विवाद कम करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश जोड़े गए हैं।
नए आयकर विधेयक का उद्देश्य कर प्रणाली को सरल और विवादमुक्त बनाना है, लेकिन निजता उल्लंघन और प्रशासनिक अतिक्रमण के आरोपों ने इस पर सवालिया निशान लगा दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे प्रावधानों पर न्यायिक निगरानी अनिवार्य होनी चाहिए, ताकि कर अधिकारियों को निरंकुश अधिकार न मिल जाएं और नागरिक अधिकार सुरक्षित रह सकें।
शिवांशु सिंह सत्या