सरहुल पर्व : प्रकृति के प्रति आस्था का उल्लास,

झारखंड में उमड़ा जनसैलाब

रांची: झारखंड में आदिवासी समाज का सबसे बड़ा त्योहार सरहुल मंगलवार को धूमधाम से मनाया गया। पारंपरिक वेशभूषा में सजे लोगों ने सड़कों पर विशाल जुलूस निकाले, जहां आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिली। प्रकृति पूजा पर आधारित इस पर्व में उरांव, मुंडा और हो जनजातियों ने साल वृक्ष की पूजा कर धरती माता के प्रति आभार जताया।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी पत्नी एवं विधायक कल्पना सोरेन के साथ करम टोली के ट्राइबल कॉलेज हॉस्टल में सरहुल अनुष्ठान में भाग लिया। उन्होंने इस मौके पर कहा कि सरहुल सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति को संजोने और समाज को एकजुट करने का जरिया है। उन्होंने परंपराओं के संरक्षण की अपील करते हुए वहां सखुआ का पौधा रोपित किया, जो पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है।

सरहुल के अवसर पर झारखंड सरकार ने दो दिवसीय राजकीय अवकाश की घोषणा की, जो वर्षों से चली आ रही मांग को पूरा करता है। मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी देते हुए लिखा कि आदिवासी समाज की भावनाओं और संस्कृति को देखते हुए अब यह अवकाश आधिकारिक रूप से मान्य होगा।

राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने भी सरहुल की शुभकामनाएं दीं और इसे प्रकृति संरक्षण की प्रेरणा देने वाला पर्व बताया। उन्होंने लोगों से पर्यावरण रक्षा का संकल्प लेने का आह्वान किया। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने भी हटमा के सरना टोली में पूजा-अर्चना कर आदिवासी परंपराओं का निर्वहन किया।

सरहुल का शुभारंभ सुबह के पारंपरिक अनुष्ठानों से हुआ, जिनका नेतृत्व आदिवासी पुजारी ‘पाहन’ करते हैं। इस दौरान वर्षा अनुमान की परंपरा भी निभाई गई, जिसमें साल वृक्ष के नीचे दो मिट्टी के घड़ों में जल भरकर रखा गया। पुजारी जगलाल पाहन ने इस विधि के आधार पर भविष्यवाणी की कि इस वर्ष झारखंड में औसत से कम वर्षा हो सकती है।

त्योहार की रौनक राजधानी रांची के अल्बर्ट एक्का चौक पर निकली भव्य शोभायात्राओं में देखने को मिली। पारंपरिक नृत्य, गीत और ढोल-मांदर की गूंज से पूरा शहर सरहुल के उल्लास में डूबा नजर आया।

तीन दिनों तक चलने वाला यह महापर्व झारखंड की समृद्ध आदिवासी संस्कृति और प्रकृति के प्रति उनकी अटूट आस्था का जीवंत प्रमाण है।

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