‘भारत कुमार’ का अंत : सिनेमा के एक युग का अवसान
मुम्बई के अस्पताल में 87 वर्ष की आयु में हुआ मनोज कुमार का निधन, देशभक्ति की प्रतिमूर्ति को भावभीनी श्रद्धांजलि

हिंदी सिनेमा में ‘भारत कुमार’ के नाम से प्रसिद्ध अभिनेता-निर्देशक मनोज कुमार का शुक्रवार तड़के मुंबई के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। 87 वर्षीय मनोज कुमार लंबे समय से विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे और बीते कई वर्षों से सार्वजनिक जीवन से दूर थे। उनके निधन से भारतीय सिनेमा का एक स्वर्णिम अध्याय समाप्त हो गया।

एक अभिनेता जो बन गया भारत की आत्मा का चेहरा
मनोज कुमार ने अपने फिल्मी करियर में देशभक्ति को न केवल अभिनय के माध्यम से जीवंत किया, बल्कि निर्देशन की बागडोर संभालते हुए भारतीय मूल्यों, संस्कारों और समर्पण की भावनाओं को भी नई पहचान दी। ‘उपकार’, ‘पूरब और पश्चिम’ तथा ‘रोटी कपड़ा और मकान’ जैसी फिल्में आज भी देशभक्ति के संदर्भ में मिसाल मानी जाती हैं।

 

 

‘उपकार’ से मिली नई पहचान

1967 में रिलीज़ हुई फिल्म उपकार से मनोज कुमार ने न केवल निर्देशन में कदम रखा, बल्कि ‘जय जवान, जय किसान’ के नारे को सिनेमाई परदे पर जीवंत कर दिया। एक किसान से सैनिक बने नायक की कहानी ने उस समय देश की जनता के दिलों को छू लिया था। इसी फिल्म से अभिनेता प्राण ने ‘मलंग चाचा’ की सकारात्मक भूमिका के रूप में नया मोड़ लिया।

देशभक्ति के साथ-साथ रोमांस का भी चेहरा
हालांकि देशभक्ति उनका प्रमुख भाव था, परंतु ‘हिमालय की गोद में’, ‘दो बदन’, और ‘पत्थर के सनम’ जैसी फिल्मों में उन्होंने एक रोमांटिक हीरो की छवि भी बनाई। उनके अभिनय और फिल्मों के गाने आज भी लोगों की जुबां पर हैं — “मेरे देश की धरती सोना उगले”, “भारत का रहने वाला हूँ”, “एक प्यार का नग़मा है” जैसी धुनें मन को देशप्रेम से भर देती हैं।

देश विभाजन का दर्द बना प्रेरणा
1937 में अविभाजित भारत के एबटाबाद (अब पाकिस्तान) में जन्मे हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी ने विभाजन के दौरान अपने परिवार के साथ दिल्ली में शरण ली। इसी पीड़ा ने उन्हें सिनेमा के माध्यम से भारत की आत्मा को टटोलने की प्रेरणा दी। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से स्नातक होने के बाद उन्होंने मुंबई का रुख किया और ‘फैशन’ (1957) से अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की।

‘मनोज’ बना उनका नाम, दिलीप कुमार थे प्रेरणा

दिलीप कुमार की फिल्म ‘शबनम’ में उनके किरदार मनोज से प्रेरित होकर उन्होंने अपना नाम मनोज कुमार रखा। वर्षों बाद जब दिलीप कुमार ने उनकी फिल्म क्रांति (1981) में अभिनय किया, तो यह क्षण उनके लिए विशेष गौरव का था।

कला के साथ न्याय के लिए भी लड़ाई
मनोज कुमार ने न केवल फिल्मों में, बल्कि वास्तविक जीवन में भी अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई। ‘शोर’ और ‘दस नंबरी’ फिल्मों के प्रसारण के नुकसान की भरपाई के लिए उन्होंने सरकार को अदालत में घसीटा। वहीं ‘ओम शांति ओम’ में उनके शैली की नकल पर उन्होंने कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी, जिसे बाद में निर्देशक फराह खान और शाहरुख खान ने माफी मांग कर सुलझा लिया।

सम्मान और विरासत
1992 में उन्हें पद्म श्री और 2015 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। हालांकि तब वे व्हीलचेयर पर थे और मंच पर खड़े होकर पुरस्कार नहीं ले सके, परंतु सारा फिल्म उद्योग उनकी विरासत के सामने नतमस्तक था।

आज भी ज़िंदा है ‘भारत कुमार’ का जज़्बा
मनोज कुमार अब हमारे बीच नहीं हैं, पर हर बार जब देशभक्ति के गीत गूंजते हैं, हर बार जब कोई ‘भारत’ को महसूस करता है — मनोज कुमार वहीं होते हैं। ‘भारत कुमार’ केवल एक नाम नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा की आत्मा में रचा-बसा एक युग है, जिसकी गूंज आने वाली पीढ़ियों तक सुनाई देती रहेगी।

श्रद्धांजलि।

 

रिपोर्ट: निहाल देव दत्ता

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