भारत की पहचान निर्माण में जैन धर्म का अतुलनीय योगदान : प्रधानमंत्री मोदी
‘नवकार महामंत्र दिवस’ पर बोले पीएम, आतंकवाद व पर्यावरण संकट के समाधान में भी उपयोगी है जैन दर्शन
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान के निर्माण में जैन धर्म का अतुलनीय योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि जैन धर्म का दर्शन न केवल देश के भीतर शांति, सहिष्णुता और पर्यावरण संतुलन को बढ़ावा देता है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर आतंकवाद, युद्ध और जलवायु संकट जैसी चुनौतियों का भी समाधान प्रस्तुत करता है।
प्रधानमंत्री मोदी बुधवार को ‘नवकार महामंत्र दिवस’ के उपलक्ष्य में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि उनकी सरकार जैन धर्म की विरासत और शिक्षाओं को संरक्षित करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि संसद भवन की दीवारों पर तीर्थंकरों की मूर्तियां और जैन धर्म की शिक्षाएं अंकित हैं, जो इसके गहरे प्रभाव को दर्शाती हैं।
अनेकांतवाद की दी दुनिया को जरूरत
प्रधानमंत्री ने जैन धर्म के मूल सिद्धांत ‘अनेकांतवाद’ का उल्लेख करते हुए कहा कि यह विचारधारा विभिन्न दृष्टिकोणों का सम्मान करती है और दुनिया को आज इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। उन्होंने कहा, “जैन धर्म जीवन की परस्पर निर्भरता को पहचानता है, इसलिए वह किसी भी प्रकार की हिंसा का विरोध करता है। यही विचार शांति, सद्भाव और पर्यावरण संरक्षण की राह दिखाता है।”
सरकार कर रही जैन साहित्य का डिजिटलीकरण
मोदी ने कहा कि जैन साहित्य भारत की आध्यात्मिक भव्यता की रीढ़ है। उनकी सरकार ने इन ग्रंथों को सुरक्षित रखने के लिए विशेष योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें प्राचीन जैन ग्रंथों का डिजिटलीकरण और पाली व प्राकृत भाषाओं को शास्त्रीय भाषा घोषित करना शामिल है।
प्रधानमंत्री की नौ संकल्पों की अपील
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने जनता से नौ संकल्प लेने की अपील की, जिनमें पानी बचाना, माँ की स्मृति में एक पौधा लगाना, स्वच्छता को बढ़ावा देना, स्थानीय उत्पादों को अपनाना, देश में ही पर्यटन करना, प्राकृतिक खेती अपनाना, मोटे अनाज को भोजन में शामिल करना, तेल की खपत में 10 प्रतिशत की कमी लाना, गरीबों की सहायता करना और योग व खेलों को जीवनशैली में शामिल करना शामिल है।
अंत में प्रधानमंत्री ने एकता का संदेश देते हुए कहा कि “जो भी ‘भारत माता की जय’ कहे, उसे गले से लगाइए। यही हमारी सांस्कृतिक एकता की असली पहचान है।”