‘बंद दरवाज़ा’ से चमका था अजय अग्रवाल का भयावह सितारा, रामसे ब्रदर्स की विरासत को दी थी अंतिम हिट
1990 में रामसे ब्रदर्स की फिल्म ‘बंद दरवाज़ा’ ने भारतीय हॉरर सिनेमा को आखिरी बार बड़े पैमाने पर डराया। इस फिल्म में अजय अग्रवाल ने एक भयावह वैम्पायर-राक्षस ‘नेवला’ का किरदार निभाया था, जो अपने लुक्स में ड्रैकुला की याद दिलाता है।
90 के दशक की शुरुआत में भारतीय अर्थव्यवस्था के खुलने के साथ ही बॉलीवुड भी तेजी से बदलने लगा। ‘फ्राइडे द 13थ’ (1980), ‘द ईविल डेड’ (1981), ‘द एक्सॉर्सिस्ट’ (1973) जैसी हॉलीवुड हॉरर फिल्मों की आसान उपलब्धता ने दर्शकों के स्वाद को भी बदल दिया। पुराने तकनीकी प्रभावों और सीमित बजट के कारण रामसे ब्रदर्स की डरावनी फिल्मों का जादू धीरे-धीरे टूटने लगा।
‘बंद दरवाज़ा’ की कहानी एक गहरे रहस्य से शुरू होती है। ठाकुराइन लज्जो (बीना बनर्जी) संतान प्राप्ति की कामना में काले पर्वतों पर बसे राक्षस नेवला से सौदा करती है। नेवला उसे गर्भधारण का आशीर्वाद देता है, लेकिन शर्त रखता है कि जन्मी संतान अगर बेटी हो तो उसे सौंपनी होगी। लज्जो बेटी के जन्म पर पीछे हट जाती है और ठाकुर (विजयेन्द्र घटगे) के सहयोग से नेवला को ताबूत में कैद कर दिया जाता है। बरसों बाद, उनकी बेटी काम्या (कुनिका) अपने प्रेमी कुमार (हाशमत खान) को पाने के लिए नेवला को फिर से आज़ाद कर देती है, और डर का खेल फिर से शुरू होता है।
लेखक जैरी पिंटो ने रामसे ब्रदर्स की फिल्मों को लेकर कहा था, “उन फिल्मों में अभिनय से ज्यादा जरूरी था सही प्रतिक्रिया देना और दृश्य पूरे करना। असली नायक तो राक्षस ही थे।”
शम्य दासगुप्ता ने अपनी पुस्तक ‘डोंट डिस्टर्ब द डेड’ में लिखा, “भारत जैसे सितारा-प्रधान देश में रामसे ब्रदर्स ने नामों की परवाह नहीं की। पर अजय अग्रवाल को उन्होंने एक ऐसे हॉरर आइकन के रूप में पेश किया, जिसे आज भी याद किया जाता है। छह फुट चार इंच लंबे इस पूर्व सिविल इंजीनियर ने ‘पुराना मंदिर’ (1984), ‘3डी सामरी’ (1985) और ‘बंद दरवाजा’ में अपने डरावने अवतार से दर्शकों को स्तब्ध कर दिया।”
अपने करियर की शुरुआत को याद करते हुए अजय अग्रवाल ने एक साक्षात्कार में कहा था, “मेरे चेहरे ने रामसे ब्रदर्स के हॉरर किरदारों को जीवंत बना दिया। उन्हें मेरे चेहरे पर खास मेकअप की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। मेरा चेहरा ही उनका डर बन गया था।”