अभिनेता कमल हासन की भाषा पर विवादित टिप्पणी ने बढ़ाया दक्षिण में तनाव
कन्नड़ भाषा पर कमल हासन की टिप्पणी ने भड़काई आग, तमिल श्रेष्ठता की राजनीति के घेरे में घिरे अभिनेता
चेन्नई/बेंगलुरु, जून 8:
तमिलनाडु के वरिष्ठ अभिनेता और अब राज्यसभा सांसद कमल हासन एक बार फिर अपनी विवादित टिप्पणी को लेकर सुर्खियों में हैं। इस बार मामला भाषा को लेकर है — अभिनेता ने हाल ही में दावा किया कि कन्नड़ भाषा की उत्पत्ति तमिल से हुई है, जिससे कर्नाटक में तीव्र आक्रोश फैल गया है।
यह विवाद उस समय सामने आया जब हासन अपनी आगामी फिल्म ‘Thug Life’ के प्रचार के लिए चेन्नई में मंच पर थे। कन्नड़ संगठनों ने इसे न केवल ऐतिहासिक रूप से गलत बताया बल्कि इसे कन्नड़ स्वाभिमान पर सीधा आघात करार दिया है।
हठधर्मिता बनाम ऐतिहासिक सच्चाई
कमल हासन के इस दावे की आलोचना न केवल सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों ने की, बल्कि भाषाविदों ने भी इसे खारिज करते हुए बताया कि तमिल और कन्नड़ दोनों भाषाएं प्रोटो-द्रविड़ियन मूल की संताने हैं, और किसी की उत्पत्ति दूसरी से नहीं हुई है।
विशेषज्ञों के अनुसार, प्राचीन ‘प्रोटो-द्रविड़ियन’ भाषा से ही तमिल, तेलुगु, मलयालम, तुलु और कन्नड़ जैसी भाषाओं का क्रमिक विकास हुआ है। यह वैचारिक भ्रांति कि तमिल अन्य सभी द्रविड़ भाषाओं की जननी है, आधुनिक भाषाशास्त्र के सैद्धांतिक आधारों पर नहीं टिकती।
कर्नाटक में बवाल, फिल्म रिलीज पर संकट
हासन की टिप्पणी से कर्नाटक फिल्म चैंबर ऑफ कॉमर्स और कई प्रखर कन्नड़ संगठन उग्र हो गए हैं। कर्नाटक रक्षणा वेदिके और अन्य संगठनों ने अभिनेता के पुतले जलाए, पोस्टर फाड़े और साफ कर दिया कि जब तक हासन सार्वजनिक रूप से माफी नहीं मांगते, उनकी फिल्म को कर्नाटक में प्रदर्शित नहीं होने दिया जाएगा।
इस बीच, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने भी अभिनेता को जनभावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए फटकार लगाई और कहा कि कोई भी अभिनेता भाषाविद् या इतिहासकार नहीं होता जो इस प्रकार के भ्रामक और विभाजनकारी बयान दे।
“प्यार से कहा था”, लेकिन विवाद शांत नहीं हुआ
कमल हासन ने अपनी टिप्पणी को “प्यार से कही बात” बताते हुए माफी मांगने से इनकार कर दिया। उनका कहना था, “प्यार कभी माफी नहीं मांगता।” हालांकि, इस सफाई से स्थिति में सुधार नहीं हुआ।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह बयान DMK नेतृत्व के लिए संगीतमय रहा, जिन्होंने उन्हें हाल ही में राज्यसभा भेजा है। हासन द्वारा तमिल की श्रेष्ठता का दावा करना ड्रविड़ राजनीति के उस भावनात्मक ध्रुवीकरण का हिस्सा माना जा रहा है, जो अक्सर भाषा को हथियार बनाकर चलता है।
भाषाई विविधता में एकता की परीक्षा
यह प्रकरण सिर्फ कमल हासन या कन्नड़-तमिल विवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की भाषायी एकता और सहिष्णुता की परख भी है। भाषा न तो गर्व का हथियार होनी चाहिए और न ही वर्चस्व स्थापित करने का माध्यम।
भारत की बहुभाषी संस्कृति में हर भाषा का अपना सम्मान और योगदान है। तमिल हो या कन्नड़, हिंदी हो या बंगाली — किसी को भी ‘श्रेष्ठ’ ठहराने की कोशिश एकता को खंडित करने वाली मानसिकता को दर्शाती है।
सबक जो सीखे जाने चाहिए
इस विवाद से यह सीख मिलती है कि भाषा के प्रति प्रेम को भाषाई अहंकार से अलग किया जाना चाहिए। नफरत और हीनता की भावना के बिना हर भाषा को उसका सम्मान मिलना चाहिए।
विशेषकर, फिल्मी और सांस्कृतिक हस्तियों को, जिनकी बातों का असर व्यापक होता है, ऐसी टिप्पणी करते समय जिम्मेदारी और समझदारी बरतनी चाहिए।
रिपोर्ट : शिवांशु सिंह सत्या