एक समय था जब सिनेमा घरों की बालकनी, स्टॉल और फर्स्ट क्लास का अपना अलग ही आकर्षण था। 1990 का दशक सिनेमा प्रेमियों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं था। हर नई फिल्म के साथ पिक्चर हॉल में टिकट के लिए लंबी कतारें लगती थीं, और दर्शकों का जोश देखते ही बनता था।

फिल्म शुरू होने से पहले टिकट खिड़की के बाहर लोगों की भीड़ जमा हो जाती। सीटों को लेकर इतनी मारामारी होती थी कि कई बार लोग दूसरे शो के खत्म होने का इंतजार गेट के पास खड़े होकर करते, ताकि अंदर घुसकर मनचाही सीटें कब्जा सकें। कुछ दर्शक तो अपनी जगह पक्की करने के लिए तीन-तीन और चार-चार सीटों पर पहले से ही कब्जा जमा लेते थे।

शहर के कई पुराने दर्शकों ने याद करते हुए बताया कि फिल्म देखने का यह जुनून और माहौल अब नहीं दिखता। एक समय था जब सिनेमा हॉल में सीटों के लिए झगड़े तक हो जाते थे, लेकिन वह अनुभव अद्भुत था।

आज डिजिटल युग में मोबाइल और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने सिनेमा देखने के तरीके को बदल दिया है। अब दर्शक अपनी सुविधा के अनुसार फिल्में देख सकते हैं। हालांकि, 90 के दशक का वह रोमांच और साझा अनुभव अब भी लोगों के दिलों में जिंदा है।

“उस दौर में फिल्म देखना एक सामाजिक आयोजन जैसा था। आज तकनीक ने सुविधा दी है, लेकिन उस दौर का मजा और माहौल अलग था,” एक स्थानीय दर्शक ने कहा।

सिनेमा के इस सुनहरे दौर की यादें आज भी सिनेमा प्रेमियों के दिलों में ताजा हैं।

 

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