लगभग 7000 वर्ष पूर्व भगवान सदाशिव ने सरगम का आविष्कार कर मानव मन के सूक्ष्म अभिव्यक्तियों को प्रकट करने का सहज रास्ता खोल दिया था।
प्रभात संगीत मानव मन में ईश्वर प्रेम के प्रकाश फैलाने का काम करता है।
मनुष्य जब पूर्ण भाव से प्रभात संगीत के साथ खड़ा हो जाता है,तो मरूस्थलीय मन भी हरा भरा हो जाता है।
मुंगेर: आनन्दमार्ग प्रचारक संघ की सांस्कृतिक संस्था “रावा” रीनासा आर्टिस्ट एंड रायटर्स एसोसिएशन की ओर प्रतिदिन शाम को धर्म महासम्मेलन पंडाल में प्रभात संगीत कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा।
लगभग 7000 वर्ष पूर्व भगवान सदाशिव ने सरगम का आविष्कार कर मानव मन के सूक्ष्म अभिव्यक्तियों को प्रकट करने का सहज रास्ता खोल दिया था।इसी कड़ी में 14 सितंबर 1982 को झारखंड राज्य के देवघर में आनंद मार्ग के प्रवर्तक भगवान श्रीश्री आनंदमूर्ति जी ने प्रथम प्रभात संगीत” बंधु हे निये चलो” बांग्ला भाषा में देकर मानव मन को भक्ति उनमुख कर दिया।8 वर्ष 1 महीना 7 दिन के छोटे से अवधि में उन्होंने 5018 प्रभात संगीत का अवदान मानव समाज को दिया।आशा के इस गीत को गाकर कितनी जिंदगियां संवर गई। प्रभात संगीत के भाव,भाषा,छंद,सूर एवं लय अद्वितीय और अतुलनीय है। संस्कृत बांग्ला,उर्दू,हिंदी,अंगिका,मैथिली,मगही एवं अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत प्रभात संगीत मानव मन में ईश्वर प्रेम के प्रकाश फैलाने का काम करता है।संगीत साधना में तल्लीन साधक को एक बार प्रभात संगीत रूपी अमृत का स्पर्श पाकर अपनी साधना को सफल करना चाहिए।इस पृथ्वी पर उपस्थित मनुष्य के मन में ईश्वर के लिए उठने वाले हर प्रकार के भाव को सुंदर भाषा और सूर में लयबद्ध कर प्रभात संगीत के रूप में प्रस्तुत कर दिया।
उन्होंने कहा कि कोई भी मनुष्य जब पूर्ण भाव से प्रभात संगीत के साथ खड़ा हो जाता है, तो मरूस्थलीय मन भी हरा भरा हो जाता है।संगीत तथा भक्ति संगीत दोनों को ही रहस्यवाद से प्रेरणा मिलती रहती है।जितनी भी सूक्ष्म तथा दैवी अभिव्यक्तियां हैं,वह संगीत के माध्यम से ही अभिव्यक्त हो सकती है।मनुष्य जीवन की यात्रा विशेषकर अध्यात्मिक पगडंडियां प्रभात संगीत के सूर से सुगंधित हो उठता है।आजकल प्रभात संगीत एक नये घराने के रूप में लोकप्रिय हो रहा है।
प्रभात संगीत की तो एक अलग ही दुनिया है।मन हर्षित हो या व्यथित हो,शंकाओं से घिरा हो या फिर द्रवित हो।प्रभात संगीत आपके अंतर्मन के तार को झंकृत कर नये उत्साहजनक वातावरण निर्मित कर देता है।उमड़ती-घुमड़ती सारी भावनाओं को पंख देने का कार्य ये संगीत करता है।ये नीचे गिरता हुआ मन सांसारिक समीकरणों के बने हुए काले और भारी बादलों को चीर कर ऊपर ही उठता जाए,ऊपर और ऊपर उड़ता जाए,एक स्वछंद आकाश में आनंदित हो तैरता रहे,वो आकाश जहां भक्त है और उसका भगवान है,उस भक्त की वेदनाएं हैं और उस भगवान का आश्वासन है।आनंद और उत्साह के इस सागर का नाम है प्रभात संगीत।
मानवीय अस्तित्व के संगीत के प्रभात का उदय 14 सितम्बर 1982 को शिवनगरी देवघर झारखंड में हुआ था।साधक के जीवन को प्रखर बनाने वाला ये संगीत अद्वितीय,अनुपम और अद्भुत है।मानस भट्टाचार्जी के कलाकारों ने प्रभात संगीत प्रस्तुत कर उपस्थित दर्शकों का मन मोह लिया प्रभात संगीत के बोल के बोल इस प्रकार थे।”आमाय छोटू एक्टि मन दिएछो अनेक आशा रेखे”..”दुनिया वालो ताकते रहो हम नजरों को नजराना दिए गए”,
“ब्रजकठोर कुसुमकोरक पिनाक पांरये नमो नमस्ते”
“आमार कृष्ण कोथाएं बोल रे तोरा बोल रे तोरा बोल रे”आमार कृष्ण कोथाए बोल रे तोरा बोल रे तोरा बोल रे”
के बोल प्रभात संगीत से संपन्न हुआ।इस कार्यक्रम में रांची के मीनाल पाठक जो बीआईटी मेसरा इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर है।उनके पूरे टीम ने संगीत का प्रदर्शन किया।