टोक्यो के एक टॉयलेट क्लीनर हिरायमा की जिंदगी को विम वेन्डर्स की फिल्म ‘परफ़ेक्ट डेज़’ में जिस संजीदगी और खूबसूरती से उकेरा गया है, वह जीवन की साधारणता में छुपे सौंदर्य को उजागर करता है। यह फिल्म एक व्यक्ति के एकाकी, अनुशासित और शांत जीवन के माध्यम से उस गहरे संगीत को महसूस कराती है, जो रोज़मर्रा की धड़कनों में गूंजता रहता है।
फिल्म की कहानी हिरायमा के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने साधारण काम को पूरी लगन और पवित्रता से करते हैं। उनका दिनचर्या एक निश्चित लय में बंधा हुआ है – सुबह उठकर काम पर जाना, सफाई करना, साइकिल से घूमना, 70 के दशक का रॉक और जैज़ संगीत सुनना और रात में कोई किताब पढ़ते हुए सो जाना। उनकी ज़िंदगी में एक सादगी और ठहराव है, जिसमें भीतरी शांति का ठोस स्पर्श महसूस होता है।
फिल्म में हिरायमा की एक टीनएज भांजी नीको के साथ मुलाकात एक हल्की-सी हलचल पैदा करती है। नीको उसे समुद्र देखने चलने का प्रस्ताव देती है, जिस पर हिरायमा मुस्कुराकर कहते हैं, “नेक्स्ट टाइम इज़ नेक्स्ट टाइम, नाऊ इज़ नाऊ।” यह संवाद फिल्म का सार बन जाता है – वर्तमान में जीने का संदेश।
‘परफ़ेक्ट डेज़’ की खासियत इसकी सादगी में छुपी गहराई है। हिरायमा का मौन, उनका वृक्षों से प्रेम, फोटोग्राफी का शौक और किताबों के प्रति लगाव – ये सभी उनके अकेलेपन को खूबसूरत बनाते हैं। निर्देशक वेन्डर्स ने फिल्म को किसी कविता की तरह रचा है, जहां दृश्य और ध्वनि मिलकर जीवन के सूक्ष्म, लेकिन महत्वपूर्ण पहलुओं को रेखांकित करते हैं।
यह फिल्म हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि जीवन की सार्थकता भव्य घटनाओं में नहीं, बल्कि उन साधारण पलों में छुपी होती है, जिन्हें हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं। हिरायमा का शांत और एकाकी जीवन यह याद दिलाता है कि जीवन का वास्तविक संगीत हमारे भीतर ही बजता है – बस उसे सुनने की देर है।