हे फुचका! रिमझिम बारिश में भीगती मोहब्बत की दास्तान
पटना।
रिमझिम गिरे सावन, सुहानी हवा चलने लगी… जब किशोर कुमार की मखमली आवाज़ में ये नग़मा गूंजता है, तब ज़हन में कोई पांच सितारा रेस्टोरेंट नहीं, बल्कि पटना की गलियों में भीगती वो मोहब्बत याद आती है जो फुचके के ठेले से शुरू होकर भुट्टे की खुशबू में घुल जाती है।
बारिश की फुहारों में जहां शहर के अमीरजादे केएफसी और डोमिनोज़ की ओर भागते हैं, वहीं प्रेमी जोड़े और कॉलेज छात्र छाते के नीचे एक-दूसरे की आंखों में बारिश से भी ज्यादा नमी ढूंढते हैं — जगह होती है बोरिंग रोड की कोई गली, और डेट स्पॉट होता है फुचके का ठेला।
फुचका — गोलगप्पे से भी ज्यादा रोमांटिक, जिसमें हर चटनी एक एहसास बन जाती है। इमली की खटास, धनिए की महक और आलू का मसाला — जैसे किसी रिश्ते की पहली मीठी-सी उलझनें हों। जब वो लड़का उस लड़की से पूछता है, “मीठा वाला दूं या तीखा?” तो जवाब में सिर्फ फुचका नहीं, बल्कि दिल भी भिगोया जाता है।
प्यार का सबसे स्वादिष्ट फॉर्मुला – स्ट्रीट फूड
बेलपुरी में कुरकुरापन हो या पापड़ी में चटपटापन, हर स्ट्रीट फूड में मोहब्बत के टेस्ट का एक अलग ज़ायका है। बारिश में भुट्टा सेंकते ठेलेवाले से गर्मागर्म भुट्टा लेना और फिर आधा-आधा खाकर गीले हाथों से मुस्कराना — यही होती है ‘पॉकेट-फ्रेंडली रोमांस’ की असली परिभाषा।
चाट-पकौड़ी से लेकर समोसे और आलू चॉप तक, पटना यूनिवर्सिटी, आर्ट्स कॉलेज, मगध महिला कॉलेज और जे.डी. वीमेंस कॉलेज के बाहर इन दुकानों पर भीड़ यूं ही नहीं लगती। ये महज़ खाने के ठेले नहीं, प्रेम कहानियों की शुरुआत और मुलाकात की जगहें हैं।
‘नो कैफे, नो पिज़्ज़ा — ओनली फुचका!’
आज भी बोरिंग रोड के मोड़ पर खड़े वो छात्र, जो 20 रुपये में दो प्लेट फुचका खाते हैं, कहते हैं — “हमें केएफसी नहीं चाहिए, न कोई बर्गर। हमारी मोहब्बत में जो स्वाद है, वो सिर्फ फुचके में है।”
बारिश में भीगकर एक साथ समोसा खाना, फिर अखबार में लिपटा आलू चॉप शेयर करना — यही होती है लोकल लौंडों की लोकल लव स्टोरी।
जब दिल भीगता है, तो फुचका और भी स्वादिष्ट लगता है।
रिमझिम बारिश में जब लड़की की चुन्नी भीग जाती है और लड़के का छाता छोटा पड़ जाता है, तब कोई मॉल नहीं, कोई मूवी नहीं — बस वो चाट वाला ठेला होता है, जो इनकी मोहब्बत को पनाह देता है।
फुचके की खटास में घुली ये मोहब्बतें सालों बाद याद बनकर लौटती हैं — और तब ये गाना कानों में फिर से गूंजता है —
“रिमझिम गिरे सावन…”
क्योंकि असली प्यार न कभी ब्रांडेड होता है, न महंगा — वो बस फुचके जैसा होता है… सस्ता, स्वादिष्ट और दिल से जुड़ा हुआ।
निहाल देव दत्ता