मंत्री को 21 महीने तक सौंपा गया ‘गैर-मौजूद’ विभाग, अब हुआ खुलासा

चंडीगढ़। पंजाब सरकार की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है, जब यह सामने आया कि कैबिनेट मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल पिछले 21 महीनों से एक ऐसे विभाग के मंत्री थे, जो असल में अस्तित्व में ही नहीं था। हाल ही में जारी एक सरकारी अधिसूचना के जरिए ‘प्रशासनिक सुधार’ विभाग को उनके प्रभार से हटा दिया गया है। अब उनके पास केवल ‘एनआरआई मामलों’ का विभाग रहेगा।

सरकारी अधिसूचना से हुआ पर्दाफाश

शुक्रवार को जारी एक आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार, “पंजाब सरकार की दिनांक 23.09.2024 की अधिसूचना में आंशिक संशोधन करते हुए यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रशासनिक सुधार विभाग, जो कुलदीप सिंह धालीवाल को सौंपा गया था, वर्तमान में अस्तित्व में नहीं है। मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल ने इस संशोधन को 2 फरवरी 2025 से प्रभावी कर दिया है।”

सूत्रों के मुताबिक, प्रशासनिक सुधार विभाग कभी भी सक्रिय नहीं था। न तो इसमें कोई अधिकारी नियुक्त किया गया और न ही कोई बैठक हुई। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि राज्य सरकार की प्रशासनिक कार्यप्रणाली किस स्तर की है।

कैसे मिला गैर-मौजूद विभाग?

मई 2023 में हुए कैबिनेट फेरबदल के दौरान कुलदीप सिंह धालीवाल को कृषि एवं किसान कल्याण विभाग से हटाकर प्रशासनिक सुधार विभाग दिया गया था। हालांकि, अब यह स्पष्ट हुआ कि यह विभाग अस्तित्व में ही नहीं था। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग का प्रभार तब गुरमीत सिंह खुड्डियान को सौंप दिया गया था।

विपक्ष ने साधा निशाना

इस खुलासे के बाद विपक्षी दलों ने आम आदमी पार्टी सरकार पर जोरदार हमला बोला है। भाजपा के प्रदेश महासचिव सुभाष शर्मा ने कहा, “यह सरकार की मानसिक दिवालियापन का परिचायक है कि जिसे विभाग सौंपा गया, वह असल में था ही नहीं। न देने वालों को पता था, न लेने वालों को।”

शिअद नेता एवं सांसद हरसिमरत कौर बादल ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा, “यह है @AAPPunjab की सरकार का प्रशासनिक मॉडल! मंत्रियों को ऐसे विभाग सौंपे जा रहे हैं, जिनका अस्तित्व ही नहीं है। असल में सरकार दिल्ली से रिमोट कंट्रोल से चलाई जा रही है।”

पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष और सांसद अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने भी सोशल मीडिया पर तंज कसा और इसे “क्या बदलाव!” कहकर कटाक्ष किया।

प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल

इस पूरे प्रकरण से पंजाब सरकार की पारदर्शिता और प्रशासनिक क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल एक तकनीकी गलती नहीं है, बल्कि सरकारी तंत्र में मौजूद गहरी खामियों को उजागर करता है। अब देखना होगा कि राज्य सरकार इस चूक पर क्या सफाई देती है।

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