अगर आप तेज़-रफ़्तार थ्रिलर की तलाश में हैं तो मलयालम फ़िल्म किष्किंधा काण्डम् आपके लिए नहीं है। यह फ़िल्म एक गहरी, इमोशनल और मनोवैज्ञानिक परतों में उलझी कहानी है, जो दो पिताओं के रिश्ते और उनकी नैतिक उलझनों को उजागर करती है। फ़िल्म की खासियत इसकी स्लो-बर्न शैली और दमदार लेखन है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है।

कहानी की परतें

फ़िल्म का मुख्य कथानक एक रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर अप्पू पिल्लई और उनके बेटे अजय के इर्द-गिर्द घूमता है। अप्पू पिल्लई एक कठोर और कम मिलनसार इंसान हैं, जो सामाजिक जीवन से दूर रहना पसंद करते हैं। उनकी दुनिया तब उलट-पलट हो जाती है, जब पता चलता है कि उनकी लाइसेंसी रिवॉल्वर लापता है।

दूसरी तरफ़, उनका बेटा अजय, एक फॉरेस्ट ऑफिसर है, जो अपनी निजी ज़िंदगी की जटिलताओं से जूझ रहा है। उसकी पहली पत्नी का कैंसर से निधन हो चुका है, और उसका सात साल का बेटा तीन साल से लापता है। अजय की दूसरी पत्नी अपर्णा, जो हाल ही में बैंगलुरु की नौकरी छोड़कर उसके साथ रहने आई है, इस घर में रहस्यमय घटनाओं और व्यवहारों का सामना करती है।

रिवॉल्वर और बंदर का कनेक्शन

घने जंगल के पास बसे इस परिवार की कहानी तब एक अजीब मोड़ लेती है, जब एक वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर की तस्वीर से पता चलता है कि रिवॉल्वर एक बंदर के पास है। यह अजीबोगरीब खुलासा कहानी को एक अप्रत्याशित दिशा में ले जाता है।

दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है फ़िल्म

फ़िल्म न सिर्फ एक रहस्य को सुलझाने की कोशिश करती है, बल्कि नैतिकता, अपराधबोध और परिवार के बीच के जटिल संबंधों पर भी सवाल उठाती है। क्या याद्दाश्त एक वरदान है या अभिशाप? क्या अपनों का साथ नैतिकता से ज़्यादा मायने रखता है? ये सवाल फ़िल्म की गहराई को दर्शाते हैं।

निर्माण और प्रदर्शन

मात्र 40 दिनों में केरल और हैदराबाद में शूट की गई इस फ़िल्म ने अपनी लोकेशन और सिनेमैटिक अपील से दर्शकों को प्रभावित किया है। आसिफ अली की दमदार अदाकारी और मजबूत निर्देशन इस फ़िल्म को ख़ास बनाते हैं।

हॉटस्टार पर उपलब्ध इस फ़िल्म का हिंदी डब संस्करण भी दर्शकों के लिए उपलब्ध है। नाम में पौराणिक संदर्भ ‘किष्किंधा’ का उपयोग करते हुए यह फ़िल्म वानर राज बाली और सुग्रीव के साम्राज्य की याद दिलाती है।

 

 

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