प्रमुख झटके के साथ पांच और भूकंपों ने मचाई तबाही, 188 से अधिक घायल, चीन, नेपाल और भारत में भी महसूस हुए झटके

तिब्बत, शिगात्से। मंगलवार की सुबह तिब्बत में भूकंप की एक श्रृंखला ने भारी तबाही मचाई, जिसमें अब तक 126 लोगों की मौत हो चुकी है और 188 से अधिक लोग घायल हुए हैं। इन भूकंपों में सबसे शक्तिशाली झटका 7.1 तीव्रता का था, जिसने पूरे क्षेत्र को हिला कर रख दिया।

झटकों का केंद्र तिंगरी काउंटी में था, जहां दर्जनों इमारतें मलबे में तब्दील हो गईं। आसपास के क्षेत्रों, जैसे नेपाल, भूटान और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों तक झटकों का असर महसूस किया गया।

मलबे में दबी जिंदगी की तलाश
राहत और बचाव कार्य तेजी से जारी है। स्थानीय प्रशासन और बचाव दल मलबे के नीचे फंसे लोगों को निकालने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। चीन के सरकारी मीडिया सीसीटीवी ने बताया कि तिंगरी और इसके आस-पास के क्षेत्रों में इमारतों को भारी नुकसान पहुंचा है।

दिल्ली-एनसीआर से लेकर काठमांडू तक महसूस किए गए झटके
दिल्ली-एनसीआर, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम समेत भारत के कई हिस्सों में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए। नेपाल की राजधानी काठमांडू में लोगों ने अपने अनुभव साझा किए। स्थानीय निवासी मीरा अधिकारी ने कहा, “मैं सो रही थी। बिस्तर हिलने लगा तो लगा कि बच्चा खेल रहा है, लेकिन खिड़की के हिलने पर समझ आया कि यह भूकंप है। तुरंत बच्चे को लेकर खुले मैदान में पहुंची।”

भूकंप की तीव्रता और भूगर्भीय कारण
नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के अनुसार, भूकंप की तीव्रता 7.1 मापी गई, जबकि चीन के अधिकारियों ने इसे 6.8 दर्ज किया। भूकंप का केंद्र भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के टकराव वाले क्षेत्र में था, जो भूकंपों के लिए जाना जाता है।

भारत ने व्यक्त की संवेदना
भारत सरकार ने तिब्बत में हुए इस प्राकृतिक हादसे पर गहरा शोक व्यक्त किया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने कहा, “तिब्बत क्षेत्र में आए विनाशकारी भूकंप से हुई जनहानि और संपत्ति के नुकसान पर भारत सरकार और जनता की ओर से गहरी संवेदनाएं। पीड़ित परिवारों के लिए हमारी प्रार्थनाएं हैं।”

इतिहास में सबसे भीषण भूकंप
पिछले पांच वर्षों में इस क्षेत्र में 3 या उससे अधिक तीव्रता वाले 29 भूकंप दर्ज किए गए हैं, लेकिन इस बार का भूकंप सबसे अधिक विनाशकारी साबित हुआ है।

ताजा हालात पर नजर
भूकंप प्रभावित इलाकों में राहत सामग्री पहुंचाई जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि क्षेत्र की भूगर्भीय स्थिति के कारण इस तरह की घटनाएं भविष्य में भी हो सकती हैं।

 

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