धार्मिक ऊर्जा से गुंजायमान हुआ आनंद नगर : धर्म महासम्मेलन में प्रभात संगीत और तांडव की रही छटा

बोकारो, 23 मई। आनंद मार्ग प्रचारक संघ के केंद्रीय मुख्यालय निकटवर्ती आनंद नगर में आनंद पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित धर्म महासम्मेलन का प्रथम दिवस श्रद्धा, भक्ति और ऊर्जा से परिपूर्ण रहा। प्रकृति की गोद में बसे इस दिव्य स्थल पर देशभर से जुटे साधकों ने प्रभात काल से ही आध्यात्मिक गतिविधियों में भाग लिया।

प्रातः सामूहिक साधना के पश्चात श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख विश्वदेवानंद अवधूत जी के स्वागत में आनंद मार्ग सेवा दल ने पारंपरिक गार्ड ऑफ ऑनर प्रस्तुत किया। उनका यह अभिनंदन समारोह भावविभोर कर देने वाला रहा, जिसमें समर्पण और अनुशासन की छवि साफ झलकी।

कौशिकी और तांडव से सजी भक्ति की छटा
हरि परिमंडल गोष्ठी के महिला विभाग की ओर से आचार्या आनंद आराधना के नेतृत्व में साधिका बहनों ने कौशिकी नृत्य की अत्यंत भावपूर्ण प्रस्तुति दी, जिसने उपस्थित श्रद्धालुओं को अध्यात्म के गहरे रंग में रंग दिया। वहीं सेवा धर्म मिशन के अंतर्गत आचार्य सुष्मितानंद अवधूत के निर्देशन में बाल साधकों ने ओजपूर्ण तांडव नृत्य कर आयोजन को और भी प्राणवंत बना दिया।

प्रभात संगीत बना ऊर्जा का स्रोत
धर्म सम्मेलन में प्रभात संगीत संख्याओं 794 व 795 का हिंदी, अंग्रेज़ी व बांग्ला में भावानुवाद क्रमशः श्री प्रद्युम्न नारायण, आचार्य विमलानंद अवधूत और आचार्य रागमायानंद अवधूत द्वारा किया गया। इसके पश्चात आचार्य जगदात्मानंद और जगतदीपानंद अवधूत के सुमधुर गायन ने वातावरण को भक्ति रस में सराबोर कर दिया।

पुरोधा प्रमुख ने रखे विचार
अपने उद्बोधन में श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख ने कहा, “प्रभात संगीत मानस को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है। विशुद्ध आनंद पाने के लिए मुक्त कंठ से कीर्तन अनिवार्य है।” उन्होंने एक वेदवाक्य उद्धृत करते हुए समझाया कि ईश्वर न तो वैकुण्ठ में, न योगियों के हृदय में, बल्कि वहां वास करते हैं जहाँ भक्त प्रेमपूर्वक उनका नाम गाते हैं।

उन्होंने कहा, “योग की मौन शांति में ईश्वर का अनुभव स्थिर होता है, जबकि भक्ति और कीर्तन की ऊर्जावान तरंगें ब्रह्मांड तक जाती हैं। जहाँ भाव, भक्ति और प्रेम का उफान होता है, वहीं ईश्वर प्रकट होते हैं।”

उन्होंने ‘नारद’ शब्द का अर्थ बताते हुए कहा कि “जो ‘नर’ अर्थात जल, जीवन और भक्ति का ‘दाता’ है, वही सच्चा नारद है।”

कीर्तन को बताया आध्यात्मिक जीवन का मार्ग
उन्होंने श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि कीर्तन और प्रभात संगीत के माध्यम से अपने अंतर्मन को आलोकित करें तथा समाज में सेवा, भक्ति और प्रेम का प्रसार करें।

धर्म महासम्मेलन के इस प्रथम दिवस की समाप्ति अध्यात्म और ऊर्जा के संगम के रूप में हुई, जो श्रद्धालुओं के मन-मस्तिष्क पर एक अमिट छाप छोड़ गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *